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[बीस]
जैनपरम्परा और यापनीयसंघ / खण्ड १ ७. 'यापनीय' नाम श्वेताम्बरसाहित्य से गृहीत
५०० ८. बोटिक शिवभूति के गुरु श्वेताम्बर ९. उत्पत्तिस्थान : दक्षिण भारत
१०. उत्पत्तिकाल : पाँचवीं शती ई० का प्रथम चरण द्वितीय प्रकरण-खारवेल-अभिलेख की समीक्षा
१. 'यापज्ञापक' का अर्थ 'यापनीय आचार्य' नहीं २. 'धर्मनिर्वाहक ' भी नहीं, अपितु धर्मोपदेशक ३. 'यापजावकेहि' में चतुर्थी नहीं, तृतीया
५२१ ४. तृतीयान्त के लिए 'वस्त्रादिदान' अर्थ संगत नहीं ५. खारवेल का श्वेताम्बरत्व भी सिद्ध नहीं ६. श्वेताम्बर सिद्ध करने का अन्य कपट-प्रयास ६.१. प्रथम लेख : राजा खारवेल और उसका वंश
लेखक : श्री० मुनि कल्याण-विजय जी ६.२. द्वितीय लेख : राजा खारवेल और उसका वंश
लेखक : बाबू कामताप्रसाद जी ६.३. उपर्युक्त लेख पर सम्पादकीय नोट-लेखक :
पं० जुगलकिशोर मुख्तार, सम्पादक-'अनेकान्त' ६.४. थेरावली-विषयक विशेष सम्पादकीय नोट-लेखक :
पं० जुगलकिशोर मुख्तार, सम्पादक–'अनेकान्त' ६.५. तृतीय लेख : राजा खारवेल और हिमवन्तथरावली
लेखक : मुनि श्री कल्याणविजय जी ६.६. 'अनेकान्त' के सम्पादक को लिखित मुनि जिनविजय
जी का पत्र और हिमवंत-थेरावली के जाली होने
की सूचना ६.७. 'अनेकान्त' में प्रकाशनार्थ प्रेषित उपर्युक्त पत्र चक्रवर्ती
खारवेल और हिमवन्त-थेरावली
लेखक : श्री० काशीप्रसाद जी जायसवाल तृतीय प्रकरण-यापनीयसंघ का पूर्व नाम 'मूलसंघ' नहीं
५५५ १. 'मूलसंघ' निर्ग्रन्थसंघ का नामान्तर
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