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________________ अन्तस्तत्त्व २. मुनि कल्याणविजय जी एवं डॉ० सागरमल जी का मत ३. यापनीयसंघ 'मूलसंघ' नहीं : इसके प्रमाण ४. क्राणूर् या काणूर् गण मूलसंघ का ही गण था ५. निर्ग्रन्थसंघ ही मूलसंघ : डॉ० सागरमल जी ६. दिगम्बरसंघ के ही मूलसंघ होने का एक स्पष्ट प्रमाण ७. निर्ग्रन्थ (दिगम्बर) संघ की प्राचीनता की स्वीकृति चतुर्थ प्रकरण - यापनीय संघ की अन्य विशेषताएँ : १. मन्दिरनिर्माण एवं मूर्तिप्रतिष्ठा २. यापनीयसाहित्य ३. श्वेताम्बरीय और यापनीय आगमग्रन्थों में पाठभेद ४. यापनीय-मान्य आगमों की भाषा शौरसेनी यापनीयसंघ का लोप क्यों हुआ? ५. पञ्चम प्रकरण - यापनीयग्रन्थ के लक्षण शब्दविशेष-सूची प्रयुक्त ग्रन्थों एवं शोधपत्रिकाओं की सूची Jain Education International For Personal & Private Use Only [ इक्कीस ] ५५६ ५५८ ५६५ ५६९ ५७२ ५७३ ५७४ ५७४ ५७४ ५७६ ५८१ ५८६ ५८८ ५९१ ६१९ www.jainelibrary.org
SR No.004042
Book TitleJain Parampara aur Yapaniya Sangh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Jain
PublisherSarvoday Jain Vidyapith Agra
Publication Year2009
Total Pages844
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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