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४४ / जैनपरम्परा और यापनीयसंघ / खण्ड १
अ०२/प्र०२ गुरु के मुख से निकले हुए इन समस्त आगमवचनों की अवहेलना कर शिवभूति उनके द्वारा दिये गये धर्म को ठुकराकर अचेलक जिनलिंग (दिगम्बरमुनिलिङ्ग) को ग्रहण कर लेता है और अपना तथाकथित बोटिकमत चला देता है। इससे सिद्ध होता है कि बोटिक श्वेताम्बर-आगमों को प्रमाण नहीं मानते थे।
आवश्यकनियुक्ति में बोटिकों को निह्नव कहा गया है। वृत्तिकार हरिभद्रसूरि ने निह्नव का अर्थ मिथ्यादृष्टि बतलाया है, और मिथ्यादृष्टि उसे घोषित किया है जो जिनवचन को प्रमाण न माने।८ इससे स्पष्ट है कि बोटिक श्वेताम्बर-आगमों को नहीं मानते थे। जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण ने विशेषावश्यकभाष्य (गा. २६२०) में बोटिकों को भिन्नमत, भिन्नलिंग और भिन्नचर्यावाला मिथ्यादृष्टि कहा है-"भिन्नमयलिंगचरिया मिच्छद्दिट्ठि त्ति बोडियाऽभिमया।"
भिन्नमतवाले मिथ्यादृष्टि कहे जाने से सिद्ध है कि बोटिक श्वेताम्बरमत को प्रामाणिक नहीं मानते थे। इतना ही नहीं, अन्य निह्नवों को तो देशविसंवादी ही कहा गया है, किन्तु बोटिकों को तो सर्वविसंवादी घोषित कर दिया गया-"देशविसंवादिनः सप्त निह्नवा:--- सर्वविसंवादिनः बोटिकनिह्नवान्---।" ( हेम.वृत्ति / पातनिका / विशे. भा./गा. २५५०)।
देशविसंवादी का अर्थ है आंशिक मतभेद रखनेवाला और सर्वविसंवादी का अर्थ है सर्वथा मतभेद रखनेवाला। इस उपाधि से तो इस बात में कोई सन्देह ही नहीं रह जाता कि बोटिकों का श्वेताम्बर-आगमों से सर्वथा मतभेद था अर्थात् वे उन्हें सर्वथा अमान्य थे। अतः सिद्ध है कि श्वेताम्बर-साहित्य में 'बोटिक' शब्द के द्वारा दिगम्बरों का ही वर्णन किया गया है।
शिवभूति के इन तर्कों, विचारों और आचरण से स्पष्ट हो जाता है कि उसकी मान्यताएँ दिगम्बरमतानुगामी हैं। उसने श्वेताम्बर-आगमों को अमान्य और सचेललिंग से मुक्ति का निषेध किया है तथा एकमात्र जिनलिंग को मोक्ष का उपाय बतलाया है। सचेललिंग के निषेध से.स्त्रीमुक्ति, गृहस्थमुक्ति और परतीर्थिकमुक्ति का निषेध स्वतः हो जाता है, जो श्वेताम्बर और यापनीय मतों के सिद्धान्त हैं। इस प्रकार शिवभूति की मान्यताएँ श्वेताम्बर और यापनीय मतों के विरुद्ध हैं, यह उसके दिगम्बरमतानुगामी २८.निह्नवो मिथ्यादृष्टिः। उक्तं च
सूत्रोक्तस्यैकस्याप्यरोचनादक्षरस्य भवति नरः। मिथ्यादृष्टिः, सूत्रं हि नः प्रमाणं जिनाभिहितम्॥ हारि. वृत्ति / आवश्यकनियुक्ति / गा.७७८ ।
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