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अ०२/प्र०२ काल्पनिक हेतुओं की कपोलकल्पितता का उद्घाटन / २१ को युक्तिसंगत बनाने के लिए उन्होंने यह कथा गढ़ी है कि 'कुन्दकुन्द आरंभ में शिवभूति द्वारा प्रवर्तित यापनीयसंघ में दीक्षित हुए थे। किन्तु आगे चलकर उन्होंने यापनीयों द्वारा मान्य श्वेताम्बरीय आगमों को अस्वीकार कर दिया और नवीन साहित्य रचकर उसमें यापनीयों के आपवादिक सवस्त्रलिंग, स्त्रीमुक्ति, केवलिकवलाहार आदि सिद्धान्तों को जिनोपदेश के विरुद्ध ठहराया। यापनीयसंघ के अधिकांश साधुओं ने कुन्दकुन्द के इन नवीन विचारों का विरोध किया, किन्तु अनेक साधु उनके अनुयायी बन गये। (अ.भ.म./ पृ.३०२-३०६)। इस प्रकार कुन्दकुन्द ने सवस्त्रमुक्ति स्त्रीमुक्ति और केवलिकवलाहार के निषेधक दिगम्बर-सम्प्रदाय की नींव रखी।' (अ.भ.म./ पृ.३२८)।
मुनि जी ने कुन्दकुन्द को दिगम्बरमत का संस्थापक सिद्ध करने के लिए बोटिक शिवभूति को यापनीयमत का प्रवर्तक घोषित करते हुए कहा है कि कुन्दकुन्द प्रथमतः उसके संघ में दीक्षित हुए थे। किन्तु , मुनि जी का यह कथन सत्य नहीं है। शिवभूति यापनीयमत का प्रवर्तक नहीं था, यह उसी बोटिकमतोत्पत्ति कथा से सिद्ध होता है, जिसके आधार पर मुनि जी ने उसे यापनीयमत का प्रवर्तक बतलाया है। अतः सत्य का साक्षात्कार करने के लिए उस बोटिकमतोत्पत्तिकथा का अनुशीलन करना आवश्यक है। वह नीचे दी जा रही है।
बोटिकमतोत्पत्ति कथा 'आवश्यकमूलभाष्य' की निम्नलिखित गाथाओं में कहा गया है कि वीर नि० सं० ६०९ में बोटिक शिवभूति ने बोटिक (दिगम्बर) मत चलाया था
छव्वाससयाइं नवुत्तराई तइया सिद्धिं गयस्स वीरस्स। तो बोडियाण दिट्ठी रहवीरपुरे समुप्पण्णा॥ १४५॥ रहवीरपुर नगरं दीवगमुजाण अज्जकण्हे य। सिवभूइस्सुवहिम्मि य पुच्छा थेराण कहणा य॥ १४६॥ ऊहाए पण्णत्तं बोडिय-सिवभूइ-उत्तराहि इमं। मिच्छादंसणमिणमो रहवीरपुरे समुप्पण्णं ॥ १४७॥ बोडिय-सिवभूईओ बोडियलिंगस्स होइ उप्पत्ती। कोडिण्ण-कोट्टवीरा
परंपराफासमुप्पण्णा॥ १४८॥१०
१०. क-आवश्यकनियुक्ति / गाथा ७८३ की हारिभद्रीयवृत्ति में उद्धृत।
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