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________________ अ० १ काल्पनिक सामग्री से निर्मित तर्कप्रासाद / ९ १४ कुन्दकुन्दसाहित्य में दार्शनिक विकास की कल्पना सुप्रसिद्ध श्वेताम्बर विद्वान् पं० दलसुख जी मालवणिया ने आचार्य कुन्दकुन्द को तत्त्वार्थसूत्रकार उमास्वाति से, जिनका समय उनके अनुसार ईसा की तीसरी-चौथी शती है, परवर्ती सिद्ध करने के लिए कुन्दकुन्द के ग्रन्थों में दार्शनिक विकासवाद की कल्पना की है। वे लिखते हैं " तत्त्वार्थ और आचार्य कुन्दकुन्द के ग्रन्थगत दार्शनिक विकास की ओर यदि ध्यान दिया जाय, तो वाचक उमास्वाति के तत्त्वार्थगत जैनदर्शन की अपेक्षा आ० कुन्दकुन्द के ग्रन्थगत जैनदर्शन का रूप विकसित है, यह किसी भी दर्शनिक से छिपा नहीं रह सकता। अत एव दोनों के समयविचार में इस पहलू को भी यथायोग्य स्थान अवश्य देना चाहिए ।' १४ यह दार्शनिक विकासवाद कपोलकल्पित है। इसका सप्रमाण, सयुक्तिक प्रतिपादन ' आचार्य कुन्दकुन्द का समय' नामक दशम अध्याय ( प्रकरण ४) में द्रष्टव्य है । १५ शिवमार में शिवकुमार की कल्पना प्रो० एम० ए० ढाकी ने आचार्य कुन्दकुन्द का अस्तित्व ईसा की आठवीं शती में सिद्ध करने का प्रयत्न किया है। आचार्य जयसेन ने 'पंचास्तिकाय' और 'प्रवचनसार' की टीकाओं में लिखा है कि आचार्य कुन्दकुन्द ने इन ग्रन्थों की रचना शिवकुमार महाराज के प्रतिबोधनार्थ की थी। डॉ० के० बी० पाठक ने शिवकुमार महाराज का समीकरण पाँचवीं शती ई० के कदम्बवंशीय राजा शिवमृगेशवर्मा से तथा प्रो० ए० चक्रवर्ती ने प्रथम शती ई० के पल्लवराज शिवस्कन्द स्वामी से किया है। प्रो० ढाकी ने इस समीकरण को अस्वीकार करते हुए आठवीं शती ई० के किसी राजा से समीकरण करने के लिए गंगवंशीय राजा शिवमार द्वितीय को शिवकुमार महाराज घोषित कर दिया, जिससे कुन्दकुन्द को आठवीं शती ई० का सिद्ध किया जा सके। Jain Education International इसी प्रकार आचार्य जयसेन ने 'पञ्चास्तिकाय' की तात्पर्यवृत्ति में कुन्दकुन्द को कुमारनन्दि- सिद्धान्तदेव का शिष्य बतलाया है। इनका समीकरण प्रो० ढाकी ने आठवीं शताब्दी ई० के एक कुमारनन्दी भट्टारक से किया है। ये दोनों समीकरण अप्रामाणिक ४. न्यायावतारवार्तिकवृत्ति / प्रस्तावना / पृ. १०३ । For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004042
Book TitleJain Parampara aur Yapaniya Sangh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Jain
PublisherSarvoday Jain Vidyapith Agra
Publication Year2009
Total Pages844
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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