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________________ [ सोलह ] जैनपरम्परा और यापनीयसंघ / खण्ड १ ३०४ ३०८ ३०९ ३१० ३१० ३११ ३१३ ३१४ ३१५ ३१५ ३१७ ३१७ ३१८ ३१९ ३१९ ३२४ ३२५ ३२८ ३३० ३३४ ३३७ ३३८ ३४० ३४२ ३४५ ३४६ ३४९ ३५१ ३५२ ३५३ ३२. आजीविकों का इतिहास ३३. आजीविक साधु की भी 'क्षपणक' संज्ञा संभव नहीं ३४. 'निर्ग्रन्थ' शब्द केवल दिगम्बरजैन साधुओं के लिए प्रसिद्ध द्वितीय प्रकरण - बौद्धसाहित्य में दिगम्बरजैन मुनि १. प्राचीन बौद्धसाहित्य में दिगम्बरजैन मुनियों का उल्लेख १.१. अंगुत्तरनिकाय में निर्ग्रन्थों की नग्नता का द्योतन १.२. 'अपदान' ग्रन्थ में श्वेतवस्त्र मुनियों का उल्लेख २. बुद्धकालीन छह अन्यतीर्थिकों में भगवान् महावीर ३. अजातशत्रु के एक मंत्री द्वारा निगण्ठनाटपुत्र की प्रशंसा ४. बुद्धेतर छह तीर्थिकों में निर्ग्रन्थ के आचार का निरूपण ५. तीर्थंकर महावीर की 'निर्ग्रन्थ' संज्ञा क्यों ? ६. अन्यतीर्थिकवत् नग्न रहने का निषेध ७. नग्नता एवं कुशचीरादि- धारण करने का निषेध ८. 'एकशाटक' सम्प्रदाय निर्ग्रन्थसम्प्रदाय से भिन्न 'उदानपालि' का प्रमाण ९. निर्ग्रन्थों के लिए भी 'अचेलक' शब्द का प्रयोग १०. निर्ग्रन्थपुत्र सच्चक द्वारा वर्णित आजीविकों का आचार ११. अचेल काश्यप द्वारा वर्णित आजीविकों का आचार १२. निर्ग्रन्थसम्प्रदाय के श्रावक की भी 'निर्ग्रन्थ' संज्ञा → चुल्लकालिंग - जातक १३. 'ओदातवसन' का अर्थ श्वेतवस्त्रधारी १४. 'दिव्यावदान' में निर्ग्रन्थ- श्रमण का नग्नरूप १५. धम्मपद - अट्ठकथा में निर्ग्रन्थ का नग्नरूप १६. निर्ग्रन्थ में अवास्तविक आचरण का चित्रण १७. बौद्धसाहित्य में वस्त्रधारी निर्ग्रन्थों का उल्लेख नहीं १७.१. कुण्डलकेसित्थेरीवत्थु १७. २. मुनि श्री नगराज जी के भ्रम का कारण १८. आर्यशूरकृत 'जातकमाला' में निर्ग्रन्थश्रमण का नग्नरूप १९. 'दिव्यावदान' के रचनाकाल में यापनीयों का उदय नहीं २०. निर्णीतार्थ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004042
Book TitleJain Parampara aur Yapaniya Sangh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Jain
PublisherSarvoday Jain Vidyapith Agra
Publication Year2009
Total Pages844
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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