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________________ ग्रन्थसार [एक सौ तिहतर] निरसन-इसी 'अशोक-रोहिणी-कथानक' के एक पूर्ववर्ती श्लोक में कहा गया है कि रोहिणीव्रत की समाप्ति पर चतुर्विधसंघ को यथायोग्य आहार, औषधि और वस्त्रादि का दान करना चाहिए पश्चादाहारदानं च भेषजं वसनादिकम्। चतुर्विधस्य सङ्घस्य यथायोग्यं विधीयते॥ २३४॥ यहाँ यथायोग्य शब्द के प्रयोग से स्पष्ट हो जाता है कि जो जिस वस्तु के दान के योग्य है, उसे उसी का दान किया जाना चाहिए। हरिषेण ने स्वयं श्रमणों को नग्नरूपी कहा है-'श्रमणा नग्नरूपिणः' (बृहत्कथाकोश / विष्णुकुमार-कथानक । क्र.११ / श्लोक ९)। अतः उनके अनुसार मुनियों को केवल आहार, भेषज, शास्त्र, वसतिका एवं अभय का दान किया जाना चाहिए। वस्त्रदान के पात्र केवल आर्यिकाएँ, क्षुल्लक-क्षुल्लिकाएँ तथा एलक हैं। यह बात हरिषेण ने 'अशोक-रोहिणी-कथानक' (क्र. ५७) के निम्नलिखित श्लोकों में स्पष्ट कर दी है पञ्चमीपुस्तकं दिव्यं पञ्चपुस्तकसंयुतम्। साधुभ्यो दीयते भक्त्या भेषजं च यथोचितम्॥ ५३५॥ आहारदानमादेयं भक्तितो भेजषजादिकम्। वस्त्राणि चार्यिकादीनां दातव्यानि मुमुक्षिभिः॥ ५३६ ॥ अनुवाद-"मुमुक्षुओं के द्वारा रोहिणीव्रत की समाप्ति पर साधुओं को पाँच पुस्तकोंसहित पञ्चमी पुस्तक, भेषज एवं आहार का दान किया जाना चाहिए तथा आर्यिका आदि को वस्त्र भी दिये जाने चाहिए।" __इससे स्पष्ट हो जाता है कि उपर्युक्त 'ततः समस्तसङ्घस्य' इत्यादि श्लोक (५५४) में मुनियों के लिए वस्त्रदान का कथन नहीं है। अतः उसमें मुनियों को वस्त्रदान का कथन मानकर बृहत्कथाकोश को यापनीयग्रन्थ कहना उसका सम्यक् अध्ययन न करने का परिणाम है। बृहत्कथाकोश में सवस्त्रमुक्तिनिषेध के प्रचुर उल्लेख हैं। (देखिये, अध्याय २३ / शीर्षक ३)। उन पर भी ध्यान नहीं दिया गया। ६. हेतु-बृहत्कथाकोश की कथाएँ यापनीयग्रन्थ भगवती-आराधना पर आधारित हैं, अतः बृहत्कथाकोश भी यापनीयग्रन्थ है। निरसन-भगवती-आराधना दिगम्बरग्रन्थ है, यह त्रयोदश अध्याय में सिद्ध किया जा चुका है। अतः इस आधार पर भी बृहत्कथाकोश दिगम्बरग्रन्थ ही सिद्ध होता है। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004042
Book TitleJain Parampara aur Yapaniya Sangh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Jain
PublisherSarvoday Jain Vidyapith Agra
Publication Year2009
Total Pages844
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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