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[एक सौ बहत्तर ]
जैनपरम्परा और यापनीयसंघ / खण्ड १
निरसन - दिगम्बरग्रन्थ भगवती आराधना की 'इत्थीवि य जं लिंगं दिट्ठे' इत्यादि गाथा (८०) और उसकी विजयोदयाटीका में आर्यिकाओं के एकसाड़ीरूप अल्पपरिग्रहात्मक लिंग को सर्वपरिग्रहत्यागरूप उत्सर्गलिंग कहा गया है । (देखिये, अध्याय १३/ प्र.३ / शी. ५) । अतः रोहिणी महारानी के द्वारा सर्वपरिग्रहत्याग किये जाने का उल्लेख दिगम्बरमत के सर्वथा अनुकूल है। इसलिए बृहत्कथाकोश यापनीयग्रन्थ सिद्ध नहीं होता ।
४. हेतु — अशोक - रोहिणी - कथानक के निम्नलिखित श्लोक में गृहस्थमुक्ति का कथन है, जो यापनीयमत का सिद्धान्त है
अणुव्रतधरः कश्चिद् गुणशिक्षाव्रतान्वितः । सिद्धिभक्तो व्रजेत्सिद्धिं मौनव्रतसमन्वितः ॥ ५६७ ॥
अनुवाद – “कोई सिद्धिभक्त (सिद्धि चाहनेवाला) अणुव्रतादिधारी श्रावक भी यदि मौनव्रत की साधना करता है, तो वह सिद्धि को प्राप्त होता है । "
निरसन - यहाँ 'सिद्धि' का अर्थ 'मोक्ष' नहीं है, अपितु 'इच्छित लौकिक पदार्थ की प्राप्ति' है । मोक्षरूप सिद्धि की प्राप्ति तो जैनेन्द्रीदीक्षा ( दैगम्बरी दीक्षा) लेने से बतलायी गयी है - " दीक्षामादाय जैनेन्द्रीं सिद्धिं याति स नीरजा : " (अशोक- रोहिणीकथानक / क्र.५७ / श्लोक ५५८ ) । 'यशोधर - चन्द्रमती - कथानक' (क्र. ७३ / श्लोक २३७२३८, २९९) में सुदत्त मुनि दो राजकुमारों को पहले क्षुल्लकदीक्षा देते हैं, पश्चात् दैगम्बरीदीक्षा। इससे सिद्ध है कि हरिषेण क्षुल्लकदीक्षा से भी मोक्ष की प्राप्ति संभव नहीं मानते, तब गृहस्थ - अवस्था से मुक्ति मानने का तो प्रश्न ही नहीं उठता। हरिषेण ने बृहत्कथाकोश के 'भद्रबाहुकथानक ( क्र. १३१ / श्लोक ६२ - ६८) में श्वेताम्बर - स्थविरकल्प (सचेललिंग) को शिथिलाचारी अर्धफालक साधुओं के द्वारा कल्पित बतलाते हुए वस्त्रधारण को मुक्ति में बाधक एवं नग्नत्व को मुक्ति का साधक सिद्ध किया है । इन प्रमाणों से सिद्ध है कि हरिषेण को गृहस्थमुक्ति कदापि मान्य नहीं है । अतः उपर्युक्त 'अणुव्रतधरः कश्चिद्' इत्यादि श्लोक बृहत्कथाकोश के यापनीयग्रन्थ होने का हेतु नहीं है।
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५. हेतु—बृहत्कथाकोशगत 'अशोक - रोहिणी - कथानक' (क्र.५७ ) के निम्न लिखित श्लोक में समस्त संघ को वस्त्रादिदान करने का उपदेश दिया गया है
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ततः समस्तसङ्घस्य देहिभिर्भक्तितत्परैः ।
देयं वस्त्रादिदानं च कर्मक्षयनिमित्ततः ॥ ५५४॥
समस्त संघ में मुनि भी आ जाते हैं, अतः मुनियों के लिए वस्त्रदान का उल्लेख होने से बृहत्कथाकोश में सवस्त्रमुक्ति को मान्यता दी गयी है। अतः यह यापनीयपरम्परा का ग्रन्थ है।
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