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ग्रन्थसार
[एक सौ उनहत्तर] डॉ० सागरमल जी ने प्रो० एच० सी० भायाणी के इस वचन के आधार पर कि 'स्वयंभू अधिक उदारचेता थे' एक प्रमुख हेतु यह जोड़ा है कि स्वयम्भू के ग्रन्थों में अन्यतैर्थिकमुक्ति की अवधारणा को स्वीकार किया गया है। यह हेतु सर्वथा असत्य है। अतः यह भी 'पउमचरिउ' के दिगम्बरग्रन्थ होने का अपलाप नहीं कर सकता।
इस प्रकार श्रीमती डॉ० कुसुम पटोरिया एवं डॉ० सागरमल जी ने स्वयम्भूकृत पउमचरिउ को यापनीयग्रन्थ सिद्ध करने के लिए जितने हेतु उपस्थित किये हैं, वे सब निरस्त हो जाते हैं। अब वे प्रमाण प्रस्तुत किये जा रहे हैं जिनसे यह निर्णय होता है कि स्वयम्भूकृत पउमचरिउ दिगम्बरपरम्परा का ही ग्रन्थ है
१. 'पउमचरिउ' के कथावतार की पद्धति दिगम्बरीय है, श्वेताम्बरीय नहीं। यह उसके दिगम्बरग्रन्थ होने का प्रमाण है।
२. 'पउमचरिउ' में तीर्थंकरमाता मरुदेवी के द्वारा सोलह स्वप्न देखे जाने का वर्णन है। श्वेताम्बरपरम्परा में केवल चौदह स्वप्नों की मान्यता है। यह 'पउमचरिउ' के दिगम्बरग्रन्थ होने का दूसरा प्रमाण है। यापनीयपरम्परा में सोलह स्वप्न मान्य हैं, इसका कोई प्रमाण नहीं है। यापनीय श्वेताम्बर-आगमों को ही मानते थे, अतः उन्हें भी चौदह स्वप्न ही मान्य हो सकते हैं।
३. जिस कैकयी को विमलसूरि ने 'पउमचरियं' में मोक्ष की प्राप्ति बताई है, उसे स्वयम्भू ने मोक्ष की प्राप्ति न बताकर मात्र देवत्व का प्राप्त होना बतलाया है। केवली भगवान् राम सीता के जीव अच्युतेन्द्र को बतलाते हैं कि उसे मनुष्यभव में पुरुषपर्याय से ही मोक्ष की प्राप्ति होगी। पउमचरिउ में ये स्त्रीमुक्तिनिषेध के प्रमाण हैं। इसका एक महत्त्वपूर्ण प्रमाण यह भी है कि सीता की अग्निपरीक्षा के बाद जब राम उनसे घर चलने का आग्रह करते हैं, तब वे विनम्रतापूर्वक अस्वीकार कर देती हैं और कहती हैं कि अब मैं ऐसा काम करना चाहती हूँ, जिससे मुझे दुबारा स्त्री न बनना पड़े, मैं जन्म, जरा और मरण का अन्त करूँगी। स्त्रीमुक्तिनिषेध के ये उल्लेख स्वयम्भू के दिगम्बर होने के अकाट्य प्रमाण हैं।
४. 'पउमचरिउ' में परशासन से मुक्ति का प्रतिपादन नहीं, बल्कि निषेध किया गया है। इसका प्रमाण यह है कि जब जिनवचनों से विमुख राजा स्वयंभू जिनधर्मानुयायी श्रीभूति से उसकी वेदवती नामक कन्या को माँगता है, तब श्रीभूति कहता है मैं अपनी सोने जैसी बेटी मिथ्यादृष्टि को कैसे दे दूं? इससे स्पष्ट है कि पउमचरिउ के कर्ता स्वयंभू जिनशासन न माननेवाले को मिथ्यादृष्टि मानते हैं और मिथ्यादृष्टि मोक्ष का अधिकारी नहीं है, इससे सिद्ध है कि वे परशासन से मुक्ति के समर्थक नहीं हैं। यह उनके दिगम्बर होने का एक और प्रमाण है।
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