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________________ ग्रन्थसार [एक सौ इकसठ] लिए सवस्त्र अपवादलिंग का विधान है। अतः सिद्ध है कि वरांगचरित यापनीयपरम्परा का ग्रन्थ है। निरसन-वरांगियों के कथन को राजा वरांग का कथन मान लेना डॉ० सागरमल जी के संस्कृतभाषा से अनभिज्ञ होने का परिणाम है। अतः वरांगचरित को यापनीयग्रन्थ मानने का यह हेतु मिथ्या है। ३. हेतु-हरिवंशपुराण के कर्ता जिनसेन यापनीय-आचार्य थे। उन्होंने जटासिंहनन्दी का आदरपूर्वक उल्लेख किया है, अतः वे भी यापनीय रहे होंगे। निरसन-हरिवंशपुराण के कर्ता आचार्य जिनसेन यापनीय नहीं, अपितु दिगम्बर थे, यह एकविंश (२१) अध्याय में सिद्ध किया गया है। अतः जटासिंहनन्दी को यापनीय सिद्ध करने के लिए प्रस्तुत यह हेतु असत्य है। ४. हेतु-कन्नड़ कवि जन्न ने जटासिंहनन्दी को काणूगण का बताया है। यह यापनीयपरम्परा का गण था। अतः जटासिंहनन्दी यापनीय थे। निरसन-काणूगण यापनीयपरम्परा का नहीं, अपितु दिगम्बरपरम्परा का गण था। (देखिये, अध्याय ७/प्र.३/शी.४)। ५. हेतु-कोप्पल में जटासिंहनन्दी के चरणचिह्न हैं। संभवतः यहाँ उनका समाधिमरण हुआ होगा। कोप्पल यापनीयों का मुख्यपीठ था। अतः जटासिंहनन्दी के यापनीय होने की प्रबल संभावना है। निरसन-इस (२० वें) अध्याय के प्रथम प्रकरण में सिद्ध किया गया है कि वरांगचरित में यापनीयमत-विरुद्ध सिद्धान्तों का प्रतिपादन है। इससे सिद्ध है कि जटासिंहनन्दी दिगम्बर थे। अतः उपर्युक्त हेतु हेत्वाभास है। ६. हेतु-यापनीयपरम्परा में मुनि के लिए 'यति' शब्द का प्रयोग अधिक प्रचलित रहा है। वरांगचरित में भी 'यति' शब्द का व्यवहार प्रचुरता से हुआ है। इससे ज्ञात होता है कि यह यापनीयसम्प्रदाय का ग्रन्थ है। निरसन–'यति' शब्द का प्रयोग दिगम्बरपम्परा में भी मुनियों के लिए बहुशः हुआ है। अतः उपर्युक्त हेतु हेत्वाभास है ७. हेतु-जटासिंहनन्दी ने वरांगचरित में प्रकीर्णक आदि श्वेताम्बरग्रन्थों का अनुसरण किया है। यह उनके यापनीयसम्पद्राय से सम्बद्ध होने का सूचक है। निरसन-श्वेताम्बरग्रन्थों का नहीं, अपितु दिगम्बरग्रन्थों का अनुसरण किया है। (देखिये, अध्याय २० / प्र.२ / शी. ६)। अतः उक्त हेतु असत्य है। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004042
Book TitleJain Parampara aur Yapaniya Sangh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Jain
PublisherSarvoday Jain Vidyapith Agra
Publication Year2009
Total Pages844
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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