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________________ १५९ [बारह] जैनपरम्परा और यापनीयसंघ / खण्ड १ ८. कल्पित सचेलाचेलसंघ की 'निर्ग्रन्थसंघ' नाम से प्रसिद्धि अयुक्तियुक्त १५१ - उपसंहार १५२ - तृतीय अध्याय श्वेताम्बरसाहित्य में दिगम्बरमत की चर्चा प्रथम प्रकरण-अचेलत्व के दिगम्बरमान्य स्वरूप का वर्णन १. श्वेताम्बरसाहित्य में अचेलपरम्परा की स्मृतियों के अवशेष १५५ २. सभी तीर्थंकरों के दिगम्बरमुद्रा से मोक्ष होने का कथन १५६ ३. एकवस्त्रसहित प्रव्रज्या की कथा वस्तुतः चेलोपसर्ग १५७ ४. तीर्थंकरों के सर्वथा अचेल होने का कथन ५. आदि-अन्तिम तीर्थंकरों द्वारा अचेलकधर्म का उपदेश १६० ६. आचारांगादि में अचेल का अर्थ अल्पचेल नहीं .१६२ ७. आचारांग-स्थानांग में अचेलत्व की श्रेष्ठता का वर्णन ८. आचारांगानुसार द्रव्यपरिग्रह भी परिग्रह १६७ ९. परीषहजय एवं तप के लिए पूर्ण निर्वस्त्रता की अनुशंसा १०. दिगम्बरत्व उत्सर्गमार्ग, साम्बरत्व अपवादमार्ग १६९ द्वितीय प्रकरण-उत्तरवर्ती साहित्य में दिगम्बरीय सिद्धान्तों का खण्डन १७१ १. परिग्रह की परम्परागत परिभाषा का खण्डन १७१ २. जिनकल्प का नाम देकर अचेलत्व के विच्छेद की घोषणा। १७३ ३. सचेल के लिए 'अचेलक' शब्द का व्यवहार प्रसिद्ध बतलाने का प्रयास १७४ ३.१. महावीर के तीर्थ में सचेलकधर्म का अस्तित्व नहीं ३.२. विपरीतार्थ-प्ररूपण द्वारा महावीर के तीर्थ में सचेलकधर्म की सिद्धि का प्रयास ३.३. 'अचेल' शब्द का अशास्त्रप्रसिद्ध-अलोकप्रसिद्ध अर्थप्ररूपण १७८ निरसन १६५ १६८ १७४ १७४ १८० Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004042
Book TitleJain Parampara aur Yapaniya Sangh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Jain
PublisherSarvoday Jain Vidyapith Agra
Publication Year2009
Total Pages844
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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