________________
ग्रन्थसार
[एक सौ पैंतीस] निरसन-उक्त गाथा में स्त्री के परम्परया मुक्त होने का अर्थात् स्त्रीशरीर से देवगति और देवगति से मनुष्यपर्याय में पुरुषशरीर पाकर मुक्त होने का कथन है, क्योंकि मूलाचार के कर्ता आचार्य वट्टकेर ने स्त्री के सोलहवें स्वर्ग से ऊपर उपपाद का निषेध किया है। (अध्याय १५/प्र.२ / शी.३)।
४. हेतु-१८४ वीं गाथा में कहा गया है कि आर्यिकाओं का गणधर गम्भीर, दुर्धर्ष, अल्पकौतूहल, चिरप्रव्रजित और गृहीतार्थ होना चाहिए। इससे जान पड़ता है कि आर्यिकाएँ मुनिसंघ के ही अन्तर्गत हैं और उनका गणधर मुनि ही होता है।
निरसन-आर्यिकाओं के मुनिसंघ के अन्तर्गत होने से स्त्री का तद्भवमोक्ष सिद्ध नहीं होता।
५. हेतु-मूलाचार और भगवती-आराधना की पचासों गाथाएँ समान हैं। मूलाचार की अनेक गाथाएँ श्वेताम्बरग्रन्थों की गाथाओं से समानता रखती हैं। यह मूलाचार के यापनीयग्रन्थ होने का प्रमाण है।
निरसन-भगवती-आराधना दिगम्बरग्रन्थ है, अतः मूलाचार और भगवतीआराधना में गाथागत समानता से मूलाचार दिगम्बरग्रन्थ ही सिद्ध होता है। तथा जिन श्वेताम्बरग्रन्थों की गाथाओं का मूलाचारगत गाथाओं से साम्य है, वे मूलाचार से ही उनमें पहुँची हैं, क्योंकि मूलाचार की रचना उन श्वेताम्बरग्रन्थों से पूर्व हुई है। (अध्याय १५/प्र.२ / शी.६)।
६. हेतु-मूलाचार की 'सेज्जोगासणिसेज्जा' गाथा (३९१) में कहा गया है कि वैयावृत्य करनेवाला मुनि रुग्णमुनि का आहार, औषधि आदि से उपकार करे। यह दिगम्बरपरम्परा के विरुद्ध है।
निरसन-यह दिगम्बरपरम्परा के विरुद्ध नहीं है, इसका स्पष्टीकरण भगवतीआराधना के अध्याय में किया जा चुका है। (अध्याय १५ / प्र.२ / शी.७)।
७. हेतु-मूलाचार की 'बावीसं तित्थयरा' (५३५) एवं 'सपडिक्कमणो धम्मो' (६२८) ये गाथाएँ भी दिगम्बरमत के विरुद्ध हैं।
निरसन-ये गाथाएँ भी दिगम्बरमत के विरुद्ध नहीं हैं। (अध्याय १५ / प्र.२ /
शी.७)।
८. हेतु-मूलाचार की ३८७ वी गाथा में आचार-जीत-कल्प ग्रन्थों का उल्लेख है, जो यापनीय और श्वेताम्बर परम्परा के हैं।
· निरसन-मूलाचार की उक्त गाथा में ये ग्रन्थों के नाम नहीं हैं, अपितु मुनि
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org