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ग्रन्थसार
[ एक सौ उनतीस ]
" पात्रप्रतिष्ठापना सूत्रेणोक्तेति संयमार्थं पात्रग्रहणं सिध्यतीति मन्यसे नैव । अचेलता नाम परिग्रहत्यागः, पात्रं च परिग्रह इति तस्यापि त्यागः सिद्ध एवेति । तस्मात्कारणसापेक्षं वस्त्रपात्रग्रहणम् । यदुपकरणं गृह्यते कारणमपेक्ष्य तस्य ग्रहणविधि : गृहीतस्य च परिहरणमवश्यं वक्तव्यम् । तस्माद्वस्त्रं पात्रं चार्थाधिकारमपेक्ष्य सूत्रेषु बहुषु यदुक्तं तत्कारणमपेक्ष्य निर्दिष्टमिति ग्राह्यम् ।" (वि.टी./ भ.आ./गा.४२३/ पृ. ३२५)।
अनुवाद –“यदि आप यह मानते हैं कि सूत्र के द्वारा पात्र की प्रतिष्ठापना कही गयी है, अतः संयम के लिए पात्रग्रहण सिद्ध होता है, तो यह अनुचित है। अचेलता का अर्थ है परिग्रह का त्याग और पात्र परिग्रह है, इसलिए उसका भी त्याग सिद्ध ही है। इसलिए वस्त्रपात्र का ग्रहण कारणसापेक्ष है। कारण - विशेष से जो उपकरण ग्रहण किया जाता है, उसके ग्रहण की विधि और ग्रहण किये गये उपकरण का त्याग अवश्य बतलाना चाहिए। इस तरह बहुत से सूत्रों (श्वेताम्बर - आगमों) में जो वस्त्र - पात्र का कथन किया गया है, वह कारणविशेष की अपेक्षा किया गया है । "
श्वेताम्बर - आगमों में मुनि के लिए अचेलता का ही उपदेश है, इसकी पुष्टि के लिए अपराजितसूरि ने श्वेताम्बरीय उत्तराध्ययन के परीषहसूत्रों को उद्धृत करते हुए कहा है
" इह चाचेलताप्रसाधनपरं शीतदंशमशकतृणस्पर्शपरीषहसहनवचनं परीषहसूत्रेषु । न हि सचेलं शीतादयो बाधन्ते । इमानि च सूत्राणि अचेलतां दर्शयन्ति - - - ।" (वि.टी. / भ.आ./गा. ४२३ / पृ. ३२६) ।
अनुवाद – “परीषहसूत्रों (उत्तराध्ययन) में जो शीत, डाँस-मच्छर, तृणस्पर्श आदि परीषहों के सहने का कथन है, वह सिद्ध करता है कि मुनि को अचेल रहने का ही उपदेश दिया गया है, क्योंकि सचेल को शीतादि की बाधाएँ नहीं होतीं । ये सूत्र भी अचेलता का ही समर्थन करते हैं--- ।"
श्वेताम्बर - आगमों के वचन उद्धृत कर इन व्याख्याओं के द्वारा उनमें ऐकान्तिक अचेलकधर्म के उपदेश की सिद्धि कोई यापनीय आचार्य नहीं कर सकता, एक कट्टर दिगम्बराचार्य ही कर सकता है । और जो आचार्य, सचेलसाधु को संयत न माने और 'मुक्ति का इच्छुक यति चेल ग्रहण नहीं करता, क्योंकि वह मुक्ति का उपाय नहीं है' ऐसी श्रद्धा रखे, क्या वह श्वेताम्बर - आगमों को प्रमाण माननेवाला कहा जा सकता है ? कदापि नहीं । अतः सिद्ध है कि पं० नाथूराम जी प्रेमी ने अपराजितसूरि को जो श्वेताम्बर - आगमों को प्रमाण माननेवाला कहकर यापनीय घोषित किया है, वह बिलकुल मिथ्या है। अपराजितसूरि एक पक्के दिगम्बराचार्य थे ।
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