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[एक सौ बाईस]
जैनपरम्परा और यापनीयसंघ / खण्ड १ निरसन-शिवार्य के गुरु सर्वगुप्त और शाकटायन द्वारा उल्लिखित सर्वगुप्त में एकत्व सिद्ध करनेवाला प्रमाण उपलब्ध नहीं है। स्वयं पं० नाथूराम जी प्रेमी ने अपने एक पूर्व लेख में लिखा है कि 'आर्य शिव (शिवार्य) के सर्वगुप्त नामक गुरु का नाम श्रवणबेलगोल के १०५ वें नम्बर के शिलालेख में (दिगम्बरपरम्परा के आचार्यों के साथ) मिलता है।' तथा शिवार्य ने भगवती-आराधना में यापनीयमत-विरुद्ध दिगम्बरीय सिद्धान्तों का प्रतिपादन किया है। इन कारणों से उनका और उनके गुरु सर्वगुप्त का यापनीय होना संभव नहीं। (अध्याय १३/प्र.२ / शी.२)।
६. हेतु-शिवार्य ने अपने लिए 'पाणितलभोजी' विशेषण का प्रयोग किया है। यह उनके यापनीय होने का सूचक है।
निरसन-दिगम्बरजैन साधु भी पाणितल में भोजन करते हैं। अतः 'पाणितलभोजित्व' यापनीय साधुओं का असाधारणधर्म नहीं है।
___७. हेतु-श्वेताम्बरसाहित्य में प्रसिद्ध मेतार्य मुनि की कथा भगवती-आराधना में मिलती है। श्वेताम्बरसाहित्य की कथा यापनीयग्रन्थ में ही आ सकती है।
निरसन–मेतार्य मुनि की कथा हरिषेणकृत बृहत्कथाकोश में भी मिलती है, जो दिगम्बरग्रन्थ है।
८. हेतु-भगवती-आराधना में क्षपक के लिए चार मुनियों द्वारा आहार लाये जाने का विधान दिगम्बरमत के विरुद्ध है।
निरसन-विरुद्ध नहीं है। प्राचीनकाल में वनों में विचरण करनेवाले दिगम्बरजैन मुनिसंघ में संस्तरारूढ़ क्षपक के लिए इसके अलावा कोई दूसरी व्यवस्था हो ही नहीं सकती थी। (अध्याय १३ / प्र.२ / शी.९)।
९. हेतु-अवमौदर्य-कष्ट को साम्यभाव से सहते हुए भद्रबाहु के समाधिमरण की कथा भगवती-आराधना को छोड़कर दिगम्बरसम्पद्राय के अन्य ग्रन्थों में नहीं मिलती। अतः भगवती-आराधना दिगम्बरसम्प्रदाय का ग्रन्थ नहीं है, यापनीयसम्प्रदाय का है।
निरसन-उक्त कथा हरिषेणकृत बृहत्कथाकोश में मिलती है, जो दिगम्बरसम्प्रदाय का ग्रन्थ है। (अध्याय १३/प्र.२ / शी.१४)।।
१०. हेतु-भगवती-आराधना में 'आचार', 'जीतशास्त्र' आदि श्वेताम्बरग्रन्थों का उल्लेख है।
निरसन-ये श्वेताम्बरग्रन्थों के नाम नहीं, अपितु क्षपक के 'चरण' (आचरण) और 'करण' (आवश्यक क्रियाओं) के वाचक शब्द हैं। (अध्याय १३ / प्र.२/ शी.१५)।
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