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ग्रन्थसार
[एक सौ पाँच] से पूर्व की रचना है। इसलिए कुन्दकुन्द तत्त्वार्थसूत्रकार के बाद विक्रम की छठी शती में हुए थे।
डॉ० सागरमल जी की यह धारणा भी मिथ्या है। सप्तभंगी की चर्चा तत्त्वार्थसूत्र से बहुत पहले के ग्रन्थों में उपलब्ध होती है। श्वेताम्बर-आगम भगवतीसूत्र (व्याख्याप्रज्ञप्ति) में सातों भंगों का उल्लेख है तथा बादरायण व्यास (५०० ई० पू० - २०० ई० पू०) ने ब्रह्मसूत्र में सप्तभंगी की आलोचना की है। अतः पंचास्तिकाय में उसका वर्णन होने से कुन्दकुन्द तत्त्वार्थसूत्रकार से उत्तरवर्ती सिद्ध नहीं होते।
१३. प्रो० एम० ए० ढाकी ने अप्रामाणिक हेतुओं के द्वारा आचार्य कुन्दकुन्द का स्थितिकाल ८वीं शताब्दी ई० सिद्ध करने का प्रयत्न किया है। उनके द्वारा प्रस्तुत हेतुओं का निरसन नीचे किया जा रहा है
१३.१. हेतु-आठवीं शती ई० से पूर्ववर्ती ग्रन्थों में कुन्दकुन्द का उल्लेख नहीं है।
निरसन-प्रथम शती ई० की 'भगवती-आराधना' और 'मूलाचार' में कुन्दकुन्द के ग्रन्थों की गाथाएँ उपलब्ध होती हैं। प्रथम-द्वितीय शती ई० में रचित 'तत्त्वार्थसूत्र' के अनेक सूत्रों की रचना कुन्दकुन्द के ग्रन्थों के आधार पर की गयी है। द्वितीय शती ई० की 'तिलोयपण्णत्ती' में भी कुन्दकुन्द की दर्जनों गाथाएँ आत्मसात् की गयी हैं। पाँचवीं शती ई० में हुए पूज्यपादस्वामी ने 'सर्वार्थसिद्धिटीका' में कुन्दकुन्द के ग्रन्थों की कई गाथाएँ उद्धृत की हैं और 'इष्टोपदेश' तथा 'समाधितन्त्र' में अनेक गाथाओं का संस्कृत श्लोकों में परिवर्तन किया है। छठी शती ई० के 'परमात्मप्रकाश' एवं ७ वीं शती ई० के 'वरांगचरित' में भी उनकी गाथाओं को क्रमशः अपभ्रंश-दोहों एवं संस्कृत श्लोकों में ढाला गया है। ये आठवीं शती ई० से पूर्व के ग्रन्थों में कुन्दकुन्द के उल्लेख के बहुसंख्यक एवं अकाट्य प्रमाण हैं।
१३.२. हेतु-जिस मर्करा-ताम्रपत्रलेख (क्र. ९५) को शकसंवत् ३८८ (ई० सन् ४६६) का माना गया है और जिसमें कुन्दकुन्दान्वय का उल्लेख है, वह जाली है और उसमें उल्लिखित संवत् शकसंवत् नहीं है।
निरसन–मर्करा-ताम्रपत्रलेख के अनुसार जिन कोङ्गणि-महाधिराज अविनीत ने कुन्दकुन्दान्वय के चन्दणंदिभटार को तलवननगर के जिनालय के लिए बदणेगुप्पे ग्राम अपने मन्त्री के हाथ से दान कराया था, वे महाधिराज अविनीत और चन्द्रणंदिभटार शकसंवत् ३८८ (४६६ ई०) में ही विद्यमान हो सकते हैं, उसके बाद नहीं, यह ४२५ ई० के नोणमंगल-ताम्रपत्र-लेख (क्र. ९४) से प्रमाणित है, क्योंकि उसमें भी उन
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