SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 231
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रस्तावना भाण्डत्यागे दुग्धत्यागवत् । वन्ध्यासूनोविक्रमादिगुणसम्पद्वक्तुमुपक्रमति | विषोपयोगमृते शत्रौ न हि तद्व्यापादनाय स्वल्पचपेटादिकं युञ्जते । स्ववधाय शूलतक्षणम् । स्वामेव वृत्ति स्ववाचा विडम्बयति । तत्कारी तवेषी चेति उपेक्षामर्हति । को हि स्वं कौपीनं विवृणुयात् । खात् पतिता रत्नवृष्टिः। न हिमालयो डाकिन्या भक्ष्यते।" इत्यादि व्यङ्गयोक्तियों और विशिष्ट मुहावरोंका प्रयोग टीकाको सर्वग्राह्य बनानेके प्रयत्नका ही फल है। 'मालवक अलसीके तैलके प्रयोगसे मलबन्ध होता है' आदि प्रचलित दवाइयोंका निर्देश भी उदाहरणके रूपमें यत्र-तत्र किया गया है । 'दूषण लगता है' अर्थमें 'दूषणं लगति' प्रयोग उनकी भाषाकी सरलताका अच्छा नमूना है । अनन्तवीर्य बीच-बीचमें प्रकरणगत अर्थको स्वरचित श्लोकोंमें भी व्यक्त करते हैं। इससे कहीं-कहीं मणिप्रवालकी तरह गद्य-पद्यमय चम्पूका आनन्द आ जाता है । कठिनाई टीकाकारकी यह है कि उसे मूलका व्याख्यान करना है. अतः मूलानुगामित्वके कारण उसका प्रवाह उसके हाथमें नहीं है। फिर जहाँ मुल ही जटिल और विविध प्रमेयबहल हो वहाँ प्रकरणबद्धता लाना दुष्कर होता है। यही कारण है कि सिद्धिविनिश्चय टीकामें न्यायकुमुदचन्द्रके प्रकरणबद्ध शास्त्रार्थोंका सौष्ठव दृष्टिगोचर नहीं हो पाता । फिर भी आ० अनन्तवीर्यने इस टीकाको अत्यन्त परिष्कृत और सर्वग्राह्य बनाने में कुछ उठा नहीं रखा है। इनका शब्दकोश बहुत बड़ा तथा अपूर्व था। यही कारण है कि दर्शन शास्त्रको इनसे अनेक नये शब्द मिले हैं। अनेक नये-नये उदाहरण भी इनकी टीका में आये हैं।' इस तरह यह टीका अपनेमें परिपूर्ण और प्रमेयसमृद्ध है, तथा अकलङ्कवाङ्मयके लिये सचमुच प्रदीप है। * [आन्तरिक विषय परिचय सिद्धिविनिश्चयमें प्रमुख रूपसे जिन विषयोंका विवेचन है उनका किंचित् क्रम विकास और तात्त्विक निरूपणके लिये हम उनको १ प्रमाणमीमांसा २ प्रमेयमीमांसा ३ नयमीमांसा और ४ निक्षेप मीमांसा इन चार विभागोंमें बाँटकर वर्णन करेंगे। १ प्रमाणमीमांसामें १ प्रत्यक्षसिद्धि २ सविकल्पसिद्धि ८ सर्वज्ञसिद्धि ३ प्रमाणान्तरसिद्धि और ६ हेतुलक्षणसिद्धि इन प्रस्तावोंमें प्रतिपादित प्रमाणसम्बन्धी विषयोंका सार होगा। २ प्रमेयमीमांसामें-४ जीवसिद्धि और ९ शब्दसिद्धि में प्रतिपादित प्रमेयसम्बन्धी सामान्य स्वरूपका वर्णन होगा। ३ नयमीमांसामें १० अर्थनयसिद्धिं और ११ शब्दनयसिद्धिके विषयोंका प्रतिपादन होगा । ४ निक्षेप मीमांसामें १२ निक्षेपसिद्धि के विषयोंका सारांश दिया जयगा । (१) देखो परिशिष्ट नं० ११ । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004038
Book TitleSiddhi Vinischay Tika Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnantviryacharya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1944
Total Pages686
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy