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ग्रन्थकार अनन्तवीर्य : उनका बहुश्रुतत्व
इस शङ्का-समाधानसे यह स्पष्ट प्रतीत होता है कि अनन्तवीर्य आचार्य यह स्पष्ट परम्परा होते हुए भी कि 'यह श्लोक पात्रकेसरीके त्रिलक्षणकदर्थनका है' उसे नहीं मानकर अपनी श्रद्धावृत्ति से उसे सीमन्धर स्वामीका मानते ही नहीं हैं किन्तु पात्रकेसरीकृत माननेवालोंका खण्डन भी करते हैं । अकलङ्कदेवके सिद्धिविनिश्चय (६-१) के “अमलालीढं पदं स्वामिनः " में आये हुए 'स्वामिनः' पदसे वे सीमन्धर स्वामी तीर्थंकरका ग्रहण करते हैं जब कि अकलङ्कदेवका अभिप्राय ' पात्रस्वामी' ग्रन्थकारसे ही लगता है । अकलंकदेवने न्यायविनिश्चय ( २।१५४ ) में इसे मूलकारिकाके रूपमें गृहीत किया है ।
० विद्यानन्द इसे वार्तिककारका कहते हैं' । आ० वादिराज इन सबका समन्वय करके कहते हैं कि सीमन्धर स्वामी तीर्थंकर के पास से पद्मावती देवताने पात्रकेसरी स्वामीको यह वार्तिक लाकर दिया है।
तात्पर्य यह कि पूर्व व्याख्याकार ( वृद्ध अनन्तवीर्य) का स्पष्ट मत होते हुए भी उनका उस श्लोकको सीमन्धरस्वामीकृत होनेका समर्थन करना उनकी श्रद्धावृत्तिका ही उन्मेष है । इस शंका समाधान से यह भी ज्ञात होता है कि उनके सामने कोई 'महती कथा' प्रसिद्ध रही है । अभी तकके उपलब्ध कथा साहित्य में प्रभाचन्द्रके गद्यकथाकोशमें सर्वप्रथम पात्रकेसरीकी यह कथा उपलब्ध होती है, ब्रह्म नेमिदत्तका कथाकोश तो इनके बादका है ।
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अनन्तवीर्यका बहुश्रुतत्व
आचार्य अनन्तवीर्यने जिस प्रकार विषयको स्पष्ट करनेके लिए पूर्वपक्षीय ग्रन्थोंसे सैकड़ों अवतरण 'तदुक्तम्' आदि के साथ उद्धृत किये हैं उसी तरह स्वपक्ष के समर्थन के लिए भी पूर्वाचार्यों के वचनों के पचासों प्रमाण उपस्थित किये हैं । इनका दर्शनशास्त्रीय अध्ययन बहुव्यापक और सर्वतोमुखी था । हम इनके द्वारा उल्लिखित ग्रन्थों और ग्रन्थकारोंमें उनका विशेष परिचय दे रहे हैं जिनके सम्बन्ध में कुछ नई जानकारी मिली है या जिनसे इनके समय आदिके निर्णय में सहायता मिल सकती है ।
वैदिक साहित्य और अनन्तवीर्य
• अनन्तवीर्यका वैदिक संहिताओं, उपनिषद् और उनके भाष्य और वार्तिक तकका अध्ययन था और उन्होंने यथावसर पूर्वपक्षके वर्णनमें इन ग्रन्थों के उद्धरण दिये हैं । यथा - ऋग्वेद से 'पुरुष एवेदं,' कृष्ण यजुर्वेद काष्ठकसंहितासे ‘अग्निहोत्रं जुहुयात्', तैत्तिरीय संहिता से 'श्वेतमालभेत', बृहदारण्यकोपनिषत्से 'आरामं तस्य पश्यन्ति', छान्दोग्योपनिषत्से 'आत्मैवेदं सर्वम्', मैत्रायण्युपनिषत् से 'अग्निहोत्रं', तथा ब्रह्मबिन्दूपनिषत् तथा त्रि० तापिन्युपनिषत् से 'एक एव हि भूतात्मा' आदि वाक्य उद्धृत किये हैं । अद्वैतके समर्थनमें सुरेश्वराचार्य के बृहदारण्यकभाष्यवार्तिकसे 'यथा विशुद्धमाकाशम्' आदि दो श्लोक उद्धृत किये हैं । इसी तरह स्मृतियों में मनुस्मृतिसे 'न मांसभक्षणे दोषः' श्कोक उद्धृत किया है । महाभारत और अनन्तवीर्य
महाभारत और तदन्तर्गत गीताके प्रणेता महर्षि व्यास माने जाते हैं । आचार्य अनन्तवीर्यने प्रस्तुत टीका ( पृ०५१८) में 'भारत' को व्यासकी कृतिकी प्रसिद्धिका निर्देश किया है । महाभारत के वनपर्व से 'अशो जन्तुरनीशोऽयम्' तथा आदिपर्व से 'कालः पचति भूतानि' श्लोक उद्धृत किये हैं । इससे ज्ञात होता है कि -आ० अनन्तवीर्य के समय में महाभारत व्यासकी कृति माना जाता था ।
(१) त० श्लो० पृ० २०५ । प्र० परी० पृ० ७२ ।
(२) पृष्ठ संख्या के लिए देखो परिशिष्ट ७ ।
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