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________________ प्रस्तावना 'यह अन्यथानुपपत्ति वार्तिक पात्रकेसरी स्वामीका है' इस विषयमें हमें तत्त्वसंग्रहके कर्ता शान्तरक्षित और उनके टीकाकार कमलशील तथा स्याद्वादरत्नाकरके कर्ता वादिदेवसूरिके स्पष्ट उल्लेख मिलते हैं।' तत्त्वसंग्रह (पृ० ४०५) में यह श्लोक है और टीकामें स्पष्ट तया इसे पात्रस्वामीका लिखा है । प्रमाणवार्तिक स्ववृत्तिटीका (पृ० ९) में यह श्लोक तो है, पर कर्ताके रूपमें पात्रस्वामीका नाम नहीं है । श्रवणबेलगोलाकी मल्लिषेण प्रशस्तिके इस श्लोकसे' ज्ञात होता है कि पात्रकेशरीने त्रिलक्षणकदर्थन नामका ग्रन्थ बनाया था । स्वयं अनन्तवीर्यके "तेन तद्विषयत्रिलक्षणकदर्थनम् उत्तरभाष्यं यतः कृतम्” (सिद्धिवि० टी० पृ० ३७१) इस उल्लेखसे ज्ञात होता है कि 'पात्रकेसरीके त्रिलक्षणकदर्थनका यह श्लोक है। ऐसी परम्परा उन्हें ज्ञात रही है। पात्रकेसरी और पात्रस्वामी एक व्यक्ति हैं यह बात प्रस्तुत टीकाके "स्वाभिनः पात्रकेशरिणः" इस उल्लेखसे ज्ञात हो जाता है और इसका समर्थन न्यायविनिश्चयविवरणकार वादिराजके “पात्रकेसरिस्वामिने"इस उल्लेखसे हो जाता है । वादिराजके वचनोंसे इस बातका भी समर्थन होता है कि पात्रकेसरीस्वामीका त्रिलक्षणकदर्थन ग्रन्थ था। उपर्युक्त विवरणसे यह निश्चित हो जाता है कि उक्त श्लोक पात्रकेशरीके त्रिलक्षणकदर्थनका है, और पात्रस्वामी पात्रकेसरी और पात्रकेसरीस्वामी इन तीनों नामोंसे उनका उल्लेख होता था। प्रस्तुत टीककार अनन्तवीर्य इसे सीमन्धरस्वामी(तीर्थकर)कृत माननेका समर्थन किसी पूर्व व्याख्याकारके मतका खण्डन करके इस प्रकार करते हैं -“यह दलोक पात्रकेसरी स्वामीका है ऐसा कोई मानते हैं । अनन्तवीर्य-यह कैसे जाना ? शंकाकार-चूँकि उन्होंने हेतुविषयक त्रिलक्षणकदर्थन नामका उत्तरभाष्य बनाया है। अनन्तवीर्य-यदि ऐसा है तो सीमन्धरस्वामीका यह श्लोक होना चाहिये, क्योंकि उन्होंने सर्वप्रथम यह श्लोक बनाया है। शंकाकार-यह कैसे जाना ? अनन्तवीर्य-पात्रकेसरीने त्रिलक्षणकदर्थन किया यह कैसे जाना ? शंकाकार-आचार्य प्रसिद्धिसे; अनन्तवीर्य-आचार्यप्रसिद्धि तो इसमें भी है, और इस विषयकी बड़ी कथा प्रसिद्ध है। यदि सीमन्धरकृत माननेमें कोई प्रमाण नहीं है; तो इसे पात्रकेसरीकृत माननेमें भी प्रमाण नहीं है । शंकाकार-पात्रकेसरीके लिए यह श्लोक बनाया गया है अतः वह पात्रकेसरीकृत है । अनन्तवीर्य-तब तो सभी ग्रन्थ और उपदेश चूँकि शिष्यों के लिए किये जाते हैं अतः वे शिष्यकृत माने जाने चाहिए । फिर पात्रकेसरी का भी यह श्लोक नहीं हो सकता; क्योंकि उन्होंने भी किसी अन्य शिष्यके निमित्त इसे बनाया होगा । जिसके लिए बनाया होगा उसीका वह माना जाना चाहिए । शंकाकार-पात्रस्वामीने तद्विषयक प्रबन्ध (टीका) बनाया है अतः उनका यह श्लोक है । अनन्तवीर्य-तब तो मूलसूत्रकारका कोई वाक्य नहीं मानना चाहिये । टीकाकारके ही सब वाक्य या सूत्र हो जायँगे । अतः यह श्लोक सीमन्धरस्वामी(तीर्थकर)का ही है।" (१) "अन्यथेत्यादिना पात्रस्वामिमतमाशङ्कते-नान्यथानुपपन्नत्वम् अन्यथानुप..."-तत्त्वसं.५० पृ० ४०४-४०५। "तदुक्तं पात्रस्वामिना अन्यथानुपपन्नत्वम्"-स्या० रत्ना० पृ० ५२१ । (२) "महिमा स पात्रकेशरिगुरोः परं भवति यस्य भक्त्यासीत् । पद्मावती सहाया विलक्षणकदर्थनं कर्तुम् ॥"-जैनशि० सं० प्र० ले० ५४ । (३) देखो-न्यायवि० वि० द्वि० पृ० ११७।। (४) "विलक्षणकदर्थने वा शास्त्रे विस्तरेण पात्रकेसरिस्वामिना प्रतिपादनात्" न्यायवि. वि. द्वि० पृ० २३४ । । (५) सिद्धि वि० टी० पृ. ३७१। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004038
Book TitleSiddhi Vinischay Tika Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnantviryacharya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1944
Total Pages686
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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