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________________ सम्पादनसामग्री और उसकी योजना दर्शनग्रन्थोंसे बुने हैं जो सम्भवतः टीकाकारके सामने रहे हैं । जहाँ ऐसे प्राचीन ग्रन्थ उपलब्ध नहीं हो सके हैं वहाँ उत्तरकालीन ग्रन्थोंका भी उपयोग किया है । इस टीकामें या मूलमें आये हुए उत्तरपक्षीय विचारोंका बिम्ब-प्रतिबिम्बभाव द्योतन करनेवाले तुलनात्मक टिप्पणोंकी प्रचुरता भी इसलिये की गई है कि इससे तत्त्वान्वेषियों को उस विचारका ऐतिहासिक क्रमविकास एक हद तक ध्यानमें आ जाय । लगभग २२५ दार्शनिक या अन्य विषयक ग्रन्थों के प्रमाण या पाठोंसे यह तुलनात्मक भाग संकलित किया गया । इनके नाम और संस्करणों का पता 'संकेत विवरण' नामक परिशिष्ट में दिया है । टिप्पणोंकी यह सामग्री प्रत्येक विचारके अर्थको स्पष्ट करने, उसके क्रमविकास और ऐतिहासिक महत्त्वको सूचन करनेके प्रमुख हेतुओंसे संकलित की है । जहाँ प्रतिमें पाठ टूट गया है या छूट गया है या दुबारा लिखा है ऐसे स्थलोंकी सूचना भी वहीं टिप्पण कर दी है। दुबारा लिखे गये पाठ मूलग्रन्थ में इस चिह्न विशेष के अन्तर्गत छापे हैं । प्रस्तावना 1 प्रस्तावना के ग्रन्थकार विभागमें मूल ग्रन्थकार अकलङ्कदेव और टीकाकार अनन्तवीर्यके समय आदिका साङ्गोपाङ्ग ऊहापोह किया है । इस भाग में उन अन्य ग्रन्थकारों और ग्रन्थोंकी प्रसङ्गतः चर्चा की है जिनका नामोल्लेख प्रकृत मूलग्रन्थ और टीकामें किया गया है । अनेक आचार्यों के प्रचलित समय के सम्बन्ध में नई सामग्री के आधारसे ऊहापोह किया है यथा-भर्तृहरि, जयराशि, अर्चंट, कर्णकगोमि, जयन्तभट्ट, अनन्तकीर्ति आदि । कुछ आचार्यों का समय भी निश्चित किया है यथा - दो अविद्धकर्ण और शान्तभद्र आदि । अकलङ्कके समकालीन और परवर्ती आचार्य प्रकरण में भी कुछ आचार्योंके समयादिका वर्णन है । अकलङ्क और अनन्तवीर्य के जीवनवृत्त और व्यक्तित्वके परखनेकी सामग्री भी इस भाग में संकलित की है । जैन दर्शनको इनकी क्या विशिष्ट देन है इसकी चर्चा इस भाग में कर दी है । ग्रन्थ विभागमें—मूलग्रन्थ और टीकाग्रन्थका बाह्य स्वरूप और अन्तरङ्ग विषय परिचय दिया है । अन्तरङ्ग विषयपरिचयमें उस उस विषयकी ऐतिहासिक पृष्ठभूमि भी संक्षेप में दिखाई है । सामान्यतया यह ध्यान रखा गया है कि इसको पढ़कर ग्रन्थका सामान्य परिचय तो हो ही जाय साथ ही विशेष जिज्ञासाकी तृप्ति भी अमुक अंश तक हो जाय । विषयसूची स्थूल विषयों का निर्देश तो पृष्ठके शीर्षकों में ही दिया है किन्तु उन स्थूल विषयोंका सूक्ष्म विषयभेद इस सूची में दिया है । इससे जिज्ञासु मूल और टीकाके प्रतिपाद्य विषयोंका आकलन कर सकेंगे । परिशिष्ट इस संस्करण में निम्नलिखित १२ परिशिष्टोंकी योजना की गई है १. मूलश्लोकोंकी श्लोकार्धानुक्रमणिका । २. मूलवृत्तिगत श्लोकोंकी सूची । ३. मूलग्रन्थान्तर्गत अवतरणों की सूची । ४. सिद्धिविनिश्चयके प्राठान्तर । ५. मूलग्रन्थके विशिष्टशब्द | ६. टीकाकाररचित श्लोकोंकी श्लोकार्थानुक्रमणी । ७. टीकान्तर्गत उद्धृत वाक्योंकी मूलस्थल निर्देश सहित सूची । ८. टीका में उद्धृत मूलवाक्य और श्लोकादि की अनुक्रम सूची । ९. टीका निर्दिष्ट ग्रन्थ और ग्रन्थकार । Jain Education International For Personal & Private Use Only " www.jainelibrary.org
SR No.004038
Book TitleSiddhi Vinischay Tika Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnantviryacharya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1944
Total Pages686
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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