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________________ लेकिन आमतौर से हमारा साधु, संन्यासी बहुत सीरियस होता है। सच तो यह है कि अगर चेहरा गंभीर और रोता हुआ न हो तो साधु होने की योग्यता पूरी नहीं होती । क्वालिफिकेशन जरूरी है वह। इसलिए अक्सर रोते हुए लोग साधु-संन्यासी हो जाते हैं। साधु-संन्यासी होने की वजह से रोते हुए दिखाई पड़ते हैं, ऐसा मत समझना; रोते हुए थे, इसलिए साधु-संन्यासी हो जाते हैं। क्योंकि वहां उनके रोने को भी प्रतिष्ठा और आदर मिलने लगता है। वैसे रोते हुए दिखाई देते तो कोई भी पूछता कि यह क्या शक्ल ले कर घूम रहे हो ? लेकिन संन्यास में वह शक्ल प्रतिष्ठित हो जाती है। नहीं, जिंदगी गंभीरता नहीं है । और जो जिंदगी में गंभीर है वह काम से मुक्त नहीं हो सकेगा। जिंदगी खेल बन जाये तो आदमी काम से मुक्त हो जाता है। पर पूरी जिंदगी को नहीं कह रहा हूं कि आप खेल बना लें, शायद वह संभव नहीं है; लेकिन जिंदगी में कुछ तो हो, जो खेल हो। बच्चे इतने हल्के हैं। और ध्यान रहे बच्चे इतने अकामी हैं, उसका कुल कारण इतना है कि बच्चों की जिंदगी गंभीर नहीं है, एक खेल है, जिंदगी एक लीला है । बच्चा खेल रहा है, गंभीर नहीं है। जैसे-जैसे गंभीर होगा, वैसे-वैसे सेक्स उसकी दुनिया में आयेगा । क्या आपको यह पता है कि सेक्सुअल-मेच्योरिटी की उम्र रोज नीचे गिरती जा रही है ? चौदह साल से अमरीका में बारह साल हो गयी, ग्यारह साल हो गयी। कुछ लड़कियां ग्यारह साल में मैच्योर होने लगी हैं और संभावना है कि इस सदी के पूरे होते-होते मैच्योरिटी की उम्र सात साल तक भी आ सकती है। सात साल... मामला क्या है? लड़कियां हमेशा चौदह साल में मैच्योर होती थीं, ये सात साल में क्यों होने लगीं ? असल में सात साल में ही लड़कियां इतनी गंभीर हो गयी हैं अब, जितनी चौदह साल में पहले हुआ करती थीं। जिंदगी सात साल में ही काफी भारी हो गयी । शिक्षा, व्यवस्था, शिष्टाचार, सभ्यता, संस्कृति रोज भारी होती जा रही है। छोटे बच्चे जितने भारी हो जायेंगे, उतनी जल्दी उन्हें शक्ति बाहर फेंकने लिए सेक्स का मार्ग खोजना पड़ेगा। इससे उल्टा भी हो सकता है। अगर हम बच्चों को देर तक हल्का रख सकें, बहुत हल्का रख सकें, तो शायद बीस साल, पच्चीस साल तक...। हम कहानियां सुनते हैं लेकिन हमें पता नहीं है, और जो गुरुकुल चलाते हैं उनको भी पता नहीं है कि मामला क्या है। क्योंकि गुरुकुल चलाने वाले लोग तो आम तौर से गंभीर होते हैं। लेकिन पच्चीस साल तक किसी जमाने में हम गुरुकुल में युवकों को काम के, सेक्स , बाहर रख सके थे । उसका कारण क्या था ? उसका कारण था कि हम पच्चीस साल तक उन्हें गंभीर होने से बचा सके थे। और कोई कारण नहीं था । जितनी गंभीरता बढ़ेगी उतना बोझ बढ़ जायेगा, जितना बोझ बढ़ेगा, तनाव हो जायेगा। जितना तनाव होगा उतना निकास चाहिए। हम पच्चीस साल तक उनको गंभीर होने से बचा सके थे। हमने पच्चीस साल तक उनकी जिंदगी को खेल... न परीक्षाओं की गंभीरता थी, न जिंदगी से लड़ने की गंभीरता थी, न उत्तरदायित्व और रिस्पांसबिलिटी की गंभीरता थी। जिंदगी एक खेल थी जंगल में । उस खेल के बीच सब बहुत आहिस्ता चल रहा था। लकड़ियां काट रहे थे लड़के, जंगल में दौड़ Jain Education International For Personal & Private Use Only अकाम 85 www.jainelibrary.org
SR No.004032
Book TitlePanch Mahavrat Pravachan aur Prashnottari - Jyo ki Tyo Dhari Dinhi Chadariya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year2012
Total Pages330
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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