SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 95
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ खरीददार तो न था। वह कोई चित्र को प्रेम करने वाला आदमी नहीं था। वह तो किसी का सिर्फ एजेंट था। पैसे भी किसी और के थे। कोई भी चित्र खरीद लेना था। उसने कोई भी चित्र उठाकर कहा, यह पैसे लो। वानगॉग की आंख से आंसू बहने लगे, उसने पैसे वापस कर दिये और कहा, मालूम होता है मेरे भाई ने तुम्हें भेजा है। वापस लौट जाओ। उसका भाई आया माफी मांगने। तो उसके भाई ने उससे पूछा कि जब तुम चित्र बेचना भी नहीं चाहते तो बनाते किसलिए हो? वानगॉग ने कहा, बनाने में ही मिल जाता है वह जो चाहिये। बनाते क्षण में ही मिल जाता है वह जो चाहिए। जब मैं चित्र बनाता हूं, तब सब मुझे मिल जाता है, अब और कुछ चाहिए नहीं। जब कोई गीत गाता है, तो सब मिल जाता है गाने में। लेकिन हां, अगर गायक भी प्रशंसा के लिए आतुर हो तो बाजारू है। वह सृजनात्मक नहीं है। अगर चित्रकार भी बाजार में बेचने के लिए चित्र बनाता है, तो यह कंस्ट्रक्शन है, प्रोडक्शन है। यह क्रिएशन नहीं है। हम कहते हैं कि परमात्मा ने जगत बनाया, क्रिएट किया। बनाया नहीं बनाया-बड़े अर्थ की बात नहीं है, लेकिन परमात्मा को हम कहते हैं, उसने सृजन किया। उसका एक ही अर्थ है। हम यह नहीं कहते, प्रोड्यूस्ड बाई; परमात्मा ने उत्पादन किया। कम कहते, सृजन किया। सिर्फ इसलिए कि नॉन-परपज़िव है। परमात्मा को इससे कुछ भी मिलने का नहीं है। परमात्मा को इससे कुछ भी उपलब्ध होने वाला नहीं है। अगर कुछ भी मिला होगा, तो इसके बनाने में ही मिला होगा, इसके बनने में ही मिला होगा, अन्यथा इसके बाहर कुछ मिलने को नहीं। जिस आदमी की जिंदगी में कुछ ऐसे क्षण हैं जब वह आनंद और सृजन में जीता है, वह आदमी धीरे-धीरे अकाम को उपलब्ध हो जायेगा। क्योंकि काम की दूसरी शर्त है, काम की दूसरी शर्त है : द रिजल्ट! कामना का आखिरी स्रोत, उदगम का, दौड़ का, शक्ति का, एक ही है कि मिलेगा क्या? हम हमेशा पूछते हैं...। लोग मेरे पास आते हैं, वे कहते हैं, ध्यान हम करें, लेकिन ध्यान में मिलेगा क्या? उनको पता ही नहीं कि ध्यान का मतलब ही एक ऐसा काम है जिसमें कुछ मिलेगा नहीं, ध्यान ही मिलेगा। और ध्यान के मिलने का अपना अर्थ है। हम जता खरीदते हैं. तो जते का दकानदार यह नहीं कह सकता कि आप बस आनंद से खरीद लें, मिलेगा कुछ नहीं। नहीं, जूता एक यूटीलिटी है, कोई खरीदेगा नहीं। लेकिन आप अगर जूते की दुकान पर जिस भांति जाते हैं उस भांति मंदिर में गये और पूछा कि प्रार्थना से मिलेगा क्या? तो आप गलत जगह पर पहुंच गये। नहीं, जिंदगी में जो भी महत्वपूर्ण है, उसका परिणाम नहीं है महत्वपूर्ण। उसका होना ही महत्वपूर्ण है। पर हमारी जिंदगी में ऐसा कोई क्षण नहीं है जो अपने में महत्वपूर्ण हो! जिस व्यक्ति को धर्म के जगत में प्रवेश करना है और जिसे ऊर्जा को ऊपर ले जाना है उसे कुछ ऐसे काम खोजने पड़ेंगे जो काम नहीं हैं। जो सिर्फ खेल हैं, लीलाएं हैं। इसलिए कृष्ण के जीवन को हम चरित्र नहीं कहते। राम के जीवन को चरित्र कहते हैं। राम का जीवन अकाम 83 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004032
Book TitlePanch Mahavrat Pravachan aur Prashnottari - Jyo ki Tyo Dhari Dinhi Chadariya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year2012
Total Pages330
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy