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कल जरूरी है। सच तो यह है कि कल अस्तित्व में होता ही नहीं, सिर्फ कामना में होता है। इट इज ए बाय प्रोडक्ट आफ डिजायर। कल तो होता ही नहीं, कल तो कहीं है ही नहीं। कल सिर्फ वासना की उत्पत्ति है। भविष्य कहीं है ही नहीं। जो है वह सदा वर्तमान है। भविष्य सिर्फ कामना की उत्पत्ति है। __ हम निरंतर कहते हैं कि समय के तीन हिस्से हैं- भविष्य, वर्तमान, अतीत। गलत कहते हैं। समय का तो सिर्फ एक ही रूप है, वर्तमान। समय के तीन रूप नहीं हैं। समय का एक ही रूप है, वर्तमान। समय तो हमेशा नाउ, अभी है। यह भविष्य और अतीत कहां से पैदा हुए? अतीत हमारी स्मृतियों से पैदा हुआ है और भविष्य हमारी कामनाओं से पैदा हुआ है।
पहला सूत्र काम-मुक्ति का वर्तमान के क्षण में होने की कोशिश। जंगल जाने को नहीं कहता। जहां आप हैं वहीं पूरी तरह हों। भोजन करें तो पूरी तरह और सोयें तो पूरी तरह, स्नान करें तो पूरी तरह। और बहुत छोटी चीजों से शुरू करें।
दूसरा सूत्र आपसे कहना चाहता हूं: सृजनात्मक हों, बी क्रिएटिव। क्योंकि जो आदमी सृजनात्मक नहीं है, उसकी ऊर्जा निरंतर सेक्स से बहना चाहेगी, क्योंकि वह भारी हो जायेगा। उसके पास शक्ति तो होगी, काम नहीं होगा। और हम बहुत ‘क्रिएटिव' बिलकुल नहीं हैं। हमारे जीवन में सृजन जैसी कोई चीज नहीं है। हमने कोई चीज ऐसी नहीं बनायी है, जिसे हम कहें सृजनात्मक है। इसका मतलब क्या?
नहीं, आप कहेंगे, हमने बनाया है। हमने कुर्सी बनायी है। हम फर्नीचर बनाते हैं। हम मकान बनाते हैं। हम कपड़े बनाते हैं। हम सृजनात्मक हैं। नहीं, यह सृजन नहीं है।
सृजन और निर्माण का फर्क समझ लें। निर्माण का मतलब है, कोई उपयोगी चीज बनाना, यूटिलिटेरियन। कुर्सी पर बैठा जा सकता है, उसका कोई उपयोग है, बाजार में उसका कुछ दाम है, इसलिए कुर्सी का बनाना सृजन नहीं है। प्रोडक्शन, उत्पादन है। लेकिन एक आदमी गीत गाता है, कोई मूल्य नहीं है। एक आदमी एक चित्र बनाता है, कोई मूल्य नहीं है। एक आदमी नाचता है, कोई हेत, परपजिवनेस नहीं है। सजन वहां से शुरू होता है जहां यूटिलिटी, उपयोगिता खतम होती है। जहां तक उपयोगिता है वहां तक सृजन नहीं है। आप कुछ जिंदगी में ऐसा भी करते रहें जिसकी कोई उपयोगिता नहीं, सिवाय इसके कि आपको उसे करने में आनंद आता है। जिंदगी में ऐसा कुछ चलता रहे जिसे करने में आपको आनंद आता है, जिसके अंतिम परिणाम से कोई संबंध नहीं है।
वानगॉग ने चित्र बनाये, जब उसने बनाये थे तब उनको खरीदने के लिए कोई राजी नहीं था। एक चित्र वानगॉग की जिंदगी में बिका नहीं। उसके छोटे भाई ने कभी यह खयाल किया कि बेचारे का एक चित्र नहीं बिका, कितना दुखी न होगा यह! तो उसने एक आदमी को कुछ पैसे दिये और कहा, तू मेरी तरफ से जाकर एक चित्र खरीद ले। कम-से-कम उसे एक तृप्ति तो मिल जायेगी कि उसकी एक चीज तो बिकी। वह आदमी गया।
कोई आदमी चित्र खरीदने आया! वानगाँग उसे चित्र बताने लगा। लेकिन वह कोई
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ज्यों की त्यों धरि दीन्हीं चदरिया
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