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पूर्णता में किया ही न जा सके, उसे मैं पाप कहता हूं। पाप और पुण्य की और कोई कसौटी जगत में नहीं है। ___ अगर आप क्रोध को पूरी तरह कर सकते हैं और फिर दुबारा भी कर सकते हैं तो फिर क्रोध पाप नहीं है। लेकिन ऐसा कभी नहीं हुआ। आप क्रोध को अधूरा करते हैं, इसलिए दुबारा फिर कर पाते हैं। अगर आप क्रोध को एक बार पूरा कर लें, तो आपके चारों तरफ नरक उपस्थित हो जायेगा, जिस नरक को आपने शास्त्रों में पढ़ा है वह आपके आस-पास खड़ा हो जायेगा। और दुबारा आप उस नरक में फिर प्रवेश नहीं चाहेंगे। फिर आप माफी नहीं मांगेंगे किसी से; बस, क्रोध से बाहर हो जायेंगे। आग इतनी जोर से लगेगी कि उससे बाहर होने के सिवाय और कोई रास्ता नहीं रह जायेगा। __ लेकिन हम कुनकुनी आग में जीते हैं, ल्युकवार्म। थोड़ा-थोड़ा करते रहते हैं तो जिंदगी भर चलता रहता है। चुकता भी नहीं और चलता भी रहता है। नरक पूरा बन जाये तो स्वर्ग में जाने में देर नहीं है। लेकिन नरक भी हम इतने धीरे-धीरे बनाते हैं कि वह कभी पूरा नहीं बन पाता, उससे छुटकारा नहीं हो पाता।
इसलिए पहला सूत्र आपसे कहता हूं अकाम की यात्रा के लिए और काम के ऊर्ध्वगमन के लिए वह है प्रतिपल जीना। संन्यासी का अर्थ घर छोड कर भाग जाना नहीं है। संन्यासी का अर्थ ः जो प्रतिपल जी रहा है, जो पल के बाहर नहीं जीता, जो अभी जीता है, यहीं जीता है, कहीं और नहीं जीता। जो भी व्यक्ति ऐसी चित्त-दशा में आ जाये, वह संन्यासी है। संन्यास का अर्थ है : टु बी इन द प्रेजेंट, टु बी इन द लिविंग मूमेंट। वह जो जीवंत-क्षण है उसमें अगर हम हैं तो हमारी शक्ति ऊपर उठनी शुरू हो जायेगी।
यह बड़े मजे की बात है कि अगर यह जीवंत-क्षण हमारे चारों ओर से हमें घेर ले-क्रोध में भी हम पूरे हो सकें तो क्रोध से हम मुक्त हो जायेंगे और अगर यौन में भी, सेक्स में भी पूरे हो सकें तो हम सेक्स से मुक्त हो जायेंगे। क्योंकि जो व्यक्ति संभोग के क्षण में, सेक्स के क्षण में, यौन के क्षण में पूरी तरह मौजूद है, वह दुबारा फिर आकांक्षा नहीं करेगा, बात समाप्त हो गई, बात व्यर्थ हो गयी। वह बात इतनी राख हो गयी कि अब दुबारा मुट्ठी बांधने का कोई अर्थ न रहा। लेकिन हम उस क्षण में भी पूरे वहां नहीं हैं। आदमी आतुर है संभोग के लिए। चौबीस घंटे दौड़ रहा है। पूरी जिंदगी दौड़ रहा है। धन कमा रहा है, मकान बना रहा है, बहुत गहरे में सेक्स की तृप्ति की दौड़ चल रही है। सब हो जाये तो वह उसकी तृप्ति कर सके। और फिर जब सेक्स का क्षण आता है तब वह उसमें पूरा नहीं है। तब वह हजार दसरी बातें सोचने लगता है कि ब्रह्मचर्य अच्छा है. वह सोचने लगता है कि ब्रह्मचर्य परम जीवन है। जब सेक्स का क्षण आता है तब वह यह सोचता है। और जब ब्रह्मचर्य की कसम लेता है तब सेक्स का विचार करता रहता है। यह आदमी पागल है, इनसेन है। यह पागलपन हमारी जिंदगी की ऊर्जा को कभी भी ऊपर की तरफ जाने नहीं देता।
इसलिए पहला सूत्र आपसे कहता हूं : पल-पल जीना। तो आपके भीतर अकाम शुरू हो जायेगा, काम क्षीण होने लगेगा, क्योंकि काम के लिए भविष्य जरूरी है। कामना के लिए
अकाम
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