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________________ 80 पर उस सम्राट ने कहा, मुझे आपसे कुछ पूछना भी है। तो उस फकीर ने कहा, फिर पूछ लो, फिर प्रश्न ही बन जाओ । हम जो भी कर रहे हैं, हम वही नहीं हैं। अगर आप क्रोध करते वक्त पूरा क्रोध बन जायें, तो शायद दोबारा क्रोध कर न सकें। लेकिन क्रोध करते वक्त क्षमा मांग रहे हैं भीतर । क्रोध करते वक्त प्रायश्चित्त कर रहे हैं भीतर । क्रोध करते वक्त जान रहे हैं कि बड़ा बुरा कर रहा हूं। तब आप क्रोध में भी पूरे नहीं हो पाते । प्रेम में भी पूरे नहीं हो पाते। जिस प्रेमी से मिलने के लिए वर्षों तक प्रतीक्षा की, जब वह मिल जाता है तब हम कुछ और सोचते हैं। जिस प्रेमी से मिलने के लिए वर्षों सोचा था, वह जब मिल जाता है और पास बैठ जाता है तब हम उसे भूल जाते हैं और कुछ और सोचने लगते हैं। जिस धन को खोजने के लिए वर्षों मेहनत की थी, जब वह मिल जाता है, तिजोरी में चाबी लगा कर, बाहर बैठ कर हम कुछ और सोचने लगते हैं। हम पूरे वक्त चूकते चले जाते हैं। हम सदा ही भविष्य में अपनी शक्ति को व्यय करते रहते हैं । अगर शक्ति को संगृहीत करना है - और शक्ति के संगृहीत हुए बिना कोई अंतर्यात्रा संभव नहीं है - तो हमें वर्तमान में जीना सीखना होगा। वर्तमान के साथ बड़ी खूबी है। वर्तमान सरकुलर है, राउंड शेप्ड है। एक नदी है, वह वन - डायमेंशनल है। वह भागी जा रही है, वह पूरे वक्त भागी जा रही है सागर की तरफ | वन-डायमेंशनल है, उसमें एक आयाम है। वह भागी जा रही है । एक सरोवर है, वह भाग नहीं सकता, वह गोल है। वह अपने भीतर ही घूमता रह जाता है । सारी भ्रमण - यात्रा उसकी भीतर है । जिस क्षण आप वर्तमान के क्षण में होते हैं, उस क्षण आप सरोवर की भांति हो जाते हैं । गोल, वर्तुलाकार शक्ति आपके भीतर घूमने लगती है। क्योंकि बाहर जाने के लिए कोई मौका नहीं मिलता, मौका मिलता है भविष्य में। कल क्या करूंगा, इससे तत्काल मौका मिल जाता है। कल क्या होगा, तत्काल मौका मिल जाता है। अभी हूं, यहां हूं... । आप मुझे यहां सुन रहे हैं। अगर आप मुझे सिर्फ सुन रहे हैं, तो आप जरा-सी भी शक्ति नहीं खोयेंगे। आप एक वर्तुलाकार व्यक्तित्व बन गये। नॉन-डायमेंशनल । अब आपका कोई आयाम न रहा। अब आप बह नहीं सकते, अगर सिर्फ सुन रहे हैं। अगर सुनने के साथ सोच रहे हैं तो आप थक जायेंगे । आपकी शक्ति क्षीण होगी। अगर मैं सिर्फ बोल रहा हूं तो मैं थकने वाला नहीं हूं, अगर मुझे बोलने के साथ सोचना भी पड़ रहा है, तो मैं थक जाऊंगा। अगर कोई भी क्रिया पूरी हो रही है तो शक्ति नहीं खोती, शक्ति संगृहीत होती है । कोई भी क्रिया अगर टोटल है तो शक्ति संगृहीत होती है। प्रेम अगर पूर्ण है तो शक्ति लाता है। क्रोध अगर पूर्ण है तो वह भी शक्ति खोता नहीं। जो भी पूर्ण हो जाता है, वह खोता नहीं। और बड़े मजे की बात है कि अगर क्रोध पूर्ण हो जाये तो आप क्रोध से मुक्त हो जाते हैं। क्योंकि वह इतना व्यर्थ मालूम पड़ता है। अगर आप प्रेम में पूर्ण हो जायें तो आप प्रेम से भर जाते हैं । क्योंकि वह इतना बहुत सार्थक मालूम पड़ता है। जिस क्रिया को पूर्णता से किया जा सके उसे मैं पुण्य कहता हूं। और जिस क्रिया को ज्यों की त्यों धरि दीन्हीं चदरिया Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004032
Book TitlePanch Mahavrat Pravachan aur Prashnottari - Jyo ki Tyo Dhari Dinhi Chadariya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year2012
Total Pages330
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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