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________________ अर्थात फ्यूचर ओरिएंटेशन। वासना का मतलब है भविष्य में जीने की इच्छा। और जीवन है सदा अभी और यहीं। जिस व्यक्ति ने भविष्य में जीने की इच्छा को अपने जीवन में प्रबल किया, वह बाहर की तरफ बहता रहेगा और उसकी ऊर्जा खोती रहेगी। भविष्य हमारी ऊर्जा को बुरी तरह पी जाता है, एब्जार्ब कर लेता है। वर्तमान में ऊर्जा संगृहीत होती है। इसलिए जिस व्यक्ति को अपनी ऊर्जा को, अपनी शक्ति को अकाम तक पहुंचाना हो, ब्रह्मचर्य तक पहुंचाना हो, जिसे अपनी ऊर्जा को सत्य और ब्रह्म तक ले जाना हो, जिसे अपनी ऊर्जा को स्वयं तक पहुंचाना हो, उसे भविष्य की इच्छाएं, भविष्य की कामनाएं, भविष्य को धीरे-धीरे क्षीण कर देना चाहिए। उसे जीना चाहिए अभी और यहीं, हियर एंड नाउ। जब आप खाना खा रहे हैं तो सिर्फ खाना खायें। दफ्तर में मत प्रवेश कर जायें खाना खाते वक्त। और जब दफ्तर में बैठें तो दफ्तर में ही बैठे और दफ्तर में बैठकर खाना न खायें। और जब सिनेमागृह में जायें तो सिनेमा-गृह में जायें, उस वक्त मंदिर को बिलकुल वहां प्रवेश न करने दें। और जब मंदिर में जायें तो मंदिर में हों, सिनेमा-गृह मंदिर में न आये। प्रतिपल जहां आप हैं, वहां पूरे होने की कोशिश करें। कठिन होगी यह बात, लेकिन सरल बन जायेगी। कठिन होगी इसलिए कि हमारी आदतें सदा वहां होने की नहीं हैं, जहां हम हैं। सदा वहां होने की हैं जहां हम नहीं हैं। जहां आप होते हैं वहां आप होते ही नहीं। आपका वह जो मन है काम से भरा हुआ, वह कहीं और होता है। जब आप कलकत्ते में होते हैं तो मन बंबई में होता है। जब आप बंबई में होते हैं तो मन कलकत्ते में होता है। जहां हम हैं उस क्षण में हमारा मन वहां नहीं होता, इसलिए जहां हम नहीं हैं वहां से हमें काम का विस्तार करना पड़ता है और जुड़ना पड़ता है। वह जोड़ हमारी ऊर्जा को खोने का रास्ता है। अगर कोई व्यक्ति अभी और यहीं जीने के लिए धीरे-धीरे, धीरे-धीरे समर्थ हो जाए...और सरल है होना। सरल इसलिए है कि अगर आप प्रयोग करेंगे तो आप बहुत हैरान हो जायेंगे कि खाना इतना आनंदपूर्ण कभी भी नहीं था जितना आनंदपूर्ण उस क्षण हो जाता है जिस क्षण आप खाना खाते वक्त पूरे मौजूद हैं, जिस वक्त आप खाना ही खा रहे हैं। ___एक झेन फकीर के पास एक सम्राट मिलने गया था। वह फकीर अपने बगीचे में गड्ढा खोद रहा था। उस सम्राट ने कहा कि मैं आपसे कुछ ज्ञान सीखने आया हूं। तो उस फकीर ने कहा, बैठो और देखो और सीखो। सम्राट बैठ गया, वह फकीर अपना गड्ढा खोदता रहा। सम्राट ने कहा, कुछ कहियेगा भी? आप तो गड्ढा ही खोदे चले जा रहे हैं। उस फकीर ने कहा, गौर से देखो-मैं हूं ही नहीं, बस गड्ढा खोदना ही है। गड्ढा खोदना ही हो रहा है। मैं हूं ही नहीं। मैं इतना पूरा लीन हूं इस गड्डा खोदने में कि मुझे अलग करने की कोई जरूरत नहीं। मैं गड्ढा खोद रहा हूं ऐसा कहना गलत है। मैं गड्ढा खोदने की क्रिया हो गया हूं ऐसा ही कहना ठीक है। तुम भी देखने की क्रिया हो जाओ। कृपा करके उस बात को मत सोचो कि जब मैं बोलूंगा तो क्या बोलूंगा, और जब तुम समझोगे तो क्या समझोगे। तुम कृपा करके यहां सिर्फ देखना हो जाओ। उस सम्राट ने कहा, यह तो बड़ा मुश्किल है, सिर्फ देखना। मुझे लौटना भी है। तो उस फकीर ने कहा, लौट जाओ, लेकिन तब लौटना ही हो जाओ। अकाम 79 www.jainelibrary.org Jain Education International For Personal & Private Use Only
SR No.004032
Book TitlePanch Mahavrat Pravachan aur Prashnottari - Jyo ki Tyo Dhari Dinhi Chadariya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year2012
Total Pages330
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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