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यह जिंदगी नहीं हो सकती, कहीं भूल हो रही है। ऊर्जा को इकट्ठा करना तो ठीक है, लेकिन खोने के लिए ही इकट्ठा करना बहुत बेमानी है, बहुत मीनिंगलेस है। अगर कोई आदमी कहे कि मैं इसलिए जन्म लेता हूं कि मर जाऊं, हम कहेंगे कि पागल हो। अगर कोई आदमी कहे कि मैं इसलिए इकट्ठा करता हूं कि खो दूं, तो हम कहेंगे कि तुम पागल हो। कोई आदमी कहे कि मैं इसलिए मकान बनाता हूं कि गिरा दूं, हम कहेंगे तुम्हारा दिमाग ठीक नहीं। लेकिन हम सब की खुद की क्या हालत है ? जिंदगी में हम करते क्या हैं? क्या कर रहे हैं! हम जो भी इकट्ठा करते हैं, खोने के लिए इकट्ठा करते हैं।
लेकिन शायद हमने कभी इस तरह सोचा नहीं। हम जो भी इकट्ठा करते हैं वह खोने के लिए इकट्ठा करते हैं! इसलिए साधु-संन्यासी हमसे उल्टा काम शुरू करते हैं। वे इकट्ठा करना कम कर देते हैं जिसमें कि खोने के लिए मौका न रह जाये। लेकिन उससे कोई फर्क नहीं पड़ता है। ___ एक आदमी दो पैसे कमाता है सांझ नदी में फेंक आता है। दूसरा आदमी इस डर से कि सांझ नदी में फेंकने से बच सकू कमाता ही नहीं। लेकिन सांझ को दोनों एक से दरिद्र होते हैं। फेंकने वाले के पास भी दो पैसे नहीं होते। जिसने कमाया नहीं उसके पास भी दो पैसे नहीं होते। ये दोनों दीन होते हैं।
आप जिस-तिस ढंग से ऊर्जा कमाते हैं और काम में व्यय कर देते हैं, यौन में व्यय कर देते हैं। संन्यासी डर के ऊर्जा कमाना बंद कर देता है, उपवास करता है, खाना कम खाता है। अपने शरीर में इतनी ही शक्ति पैदा करता है जितना रोजमर्रा के काम में आ जाये, अतिरिक्त न बचे। अतिरिक्त बचे तो वह मुश्किल में पड़ जायेगा। क्योंकि फिर आपका ही काम उसे करना पड़ेगा। लेकिन इससे कोई फर्क नहीं पड़ता, आप कमा कर खो देते हैं, वह कमाता ही नहीं ताकि खोना न पड़े। लेकिन इससे कोई ऊर्जा बचती नहीं। ___ अभी अमेरिका की एक विज्ञानशाला में वे एक प्रयोग कर रहे थे। वह हिंदुस्तान भर के संन्यासियों को ठीक से समझ लेना चाहिए। तीस विद्यार्थियों को एक महीने तक भूखा रखा गया और यह समझने की कोशिश की गयी कि भूख और सेक्स का क्या संबंध है? भूख से यौन का क्या संबंध है? ____ बड़े अदभुत परिणाम हुए। पहले सात दिनों में जब उन्हें भूखा रखा गया तो उनकी यौनप्रवृत्ति तीव्र हो गयी, उनकी सेक्सुअलिटी बढ़ गयी। लेकिन सात दिन के बाद फिर उनकी यौन-प्रवृत्ति कम होती चली गयी। पंद्रहवें दिन उनके सामने नग्न चित्र भी रखे गये स्त्रियों के, तो वे उत्सुक न रहे। किसी भी तरह उन्हें भड़काया जाये, वे कोई रस न लें। तीस दिन पूरे होते-होते उन तीसों युवकों में किसी तरह की कामवासना न रह गयी, किसी तरह का यौन न रहा। वे बिलकुल ठंडे, कोल्ड हो गये, फ्रोजन, जम गये, बिलकुल। उनको हिलाने का कोई उपाय न रहा, सेक्स जैसे विदा हो गया।
फिर उनको भोजन दिया गया। सात दिन में फिर वापस लौटना शुरू हो गया। पंद्रह दिन के बाद वे फिर अपनी जगह वापस लौट गये जहां थे। तीस दिन के बाद वे फिर सामान्य
अकाम
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