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________________ व्यक्ति थे। वही रस, वही यौन, वही वासना फिर उनको पकड़ ली। हआ क्या? यौन नष्ट नहीं हआ, सिर्फ यौन को जो अतिरिक्त ऊर्जा चाहिए वह नहीं मिली। सांप तो जिंदा रहा, लेकिन चलने की ताकत न रही। सांप पड़ गया बेहोश। पड़ा रहा, प्रतीक्षा करता रहा कि जब शक्ति मिले तो चलूं। फिर शक्ति मिली, फिर सांप हिलने-डोलने लगा, फिर सांप खड़ा हो गया। इन तीस दिनों के प्रयोग ने यह बताया कि संन्यासी अपने को लंबे अरसे से धोखा दे रहे हैं। हां, अगर इन बच्चों को निरंतर ही कम भोजन पर रखा जा सके, इतना ही भोजन दिया जाये जितना उनके चलने, उठने, बैठने, बात करने में खतम हो जाये शक्ति, तो अब यह बिना सेक्स के जिंदा रह सकेंगे। लेकिन यह अकाम नहीं है, यह सिर्फ मुर्दा काम है, यह मरा हुआ सेक्स है। यह मुर्दा काम है, यह मुर्दा यौन है, यह अकाम नहीं है। इसलिए जिन लोगों को यह समझ में आ गया कि शक्ति इकट्ठी होती है, फिर उससे मुक्त होने के लिए, रिलीफ के लिए हमें यौन में जाना पड़ता है, उन लोगों ने शक्ति इकट्ठी करनी बंद कर दी। वे भी उसी भ्रांति में हैं, जिस भ्रांति में बाकी लोग हैं। गृहस्थ और संन्यासी भ्रांतियों के उल्टे छोर हैं। अकाम का यह अर्थ नहीं है। अकाम का अर्थ है, शक्ति तो पैदा हो, लेकिन यौन से विसर्जित न हो, संगृहीत हो। और जब शक्ति बहुत बड़े पैमाने पर संग्रहित होती है और यौन से विसर्जित नहीं होती, तो वह शक्ति आपके भीतर ऊर्ध्वगमन शुरू करती है। जैसे कि हम एक नदी की बाढ़ को रोक दें, बांध बना दें, तो नदी की जो गहराई थी-समझ लें दस फीट थी, बांध बनाने पर बांध की गहराई सौ फीट हो जायेगी। और नदी जितनी रुकने लगेगी, उतनी ही दीवार बड़ी करनी पड़ेगी और बांध गहरा होता जायेगा और बांध हजार फीट गहरा भी हो सकता है। ऊपर उठने लगेगा। जब भी कोई शक्ति रोकी जाती है, तो ऊपर उठती है, क्योंकि संगृहीत होती है। जब आपके भीतर शक्ति अतिरिक्त इकट्ठी होने लगती है तो आपके भीतर शक्ति का अंबार लगता है और ऊपर की तरफ उठनी शुरू हो जाती है। अभी आपकी सेक्स लेवल से ऊपर शक्ति कभी नहीं उठती। बस आपकी जिंदगी का जो सेक्स का तल है, यौन का जो तल है, शक्ति वहां तक जरा-सी भी ऊपर उठी कि आपने उसका व्यय किया, फिर आप अपनी जगह लौट आये। अगर यह शक्ति इकट्ठी हो, तो सेक्स लेवल से ऊपर उठती है। और ध्यान रहे सेक्स मनुष्य का निम्नतम सेंटर है। नीचे से नीचे का द्वार है। उसके ऊपर और बड़े द्वार हैं। अगर यह शक्ति ऊपर उठे तो यह दूसरे द्वार खोलने शुरू करती है। ___समझ लें, कि मनुष्य के भीतर सेक्स जैसे छह द्वार और हैं और ऊर्जा एक-एक द्वार पर आती है तो आनंद की गति बढ़ती है और आप हैरान होते हैं। जब सेक्स से ऊपर उठकर दूसरे चक्र पर शक्ति आती है तो आप हैरान होते हैं कि मैं कैसा पागल था, मैं शक्ति को कहां खो रहा था? यहां खोऊं तो बहुत आनंद आता है। उससे बहुत ज्यादा आता है जो पहले केंद्र पर आ रहा था। ज्यों कीयो ज्यों की त्यों धरि दीन्हीं चदरिया 76 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004032
Book TitlePanch Mahavrat Pravachan aur Prashnottari - Jyo ki Tyo Dhari Dinhi Chadariya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year2012
Total Pages330
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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