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लेते हैं भीतर तो बहुत बड़ा चमत्कार घटित होता है। आप साधारण मृत पदार्थ को भीतर ले जाते हैं और आपकी जीवन-ऊर्जा उसे जीवंत बनाती है। नॉन-आरगेनिक को आरगेनिक बनाती है। उसमें बहुत ऊर्जा व्यय होती है। भोजन ऊर्जा देता है, लेकिन भोजन को करने
और भोजन को खून बनाने में ऊर्जा व्यय होती है। चलते हैं तो ऊर्जा व्यय होती है, बैठते हैं तो ऊर्जा व्यय होती है, सोते हैं तो सोने में भी ऊर्जा व्यय होती है, संगृहीत भी होती है। ___ इस सारी प्रक्रिया, जीवन की सारी प्रक्रिया के बाद जो थोड़ी-बहुत ऊर्जा आपके पास बचती है, उसका आपने सिवाय काम को यौन में परिवर्तन करने के और कोई उपयोग नहीं किया है। उस ऊर्जा का आप सिर्फ सेक्स में उपयोग करते हैं। इसलिए यह समझ लेने जैसा है कि सब-कुछ करके जो बचता है हमारे पास, उसका हम क्या उपयोग कर रहे हैं। उसका उपयोग अगर सिर्फ सेक्स में हो रहा है तो ध्यान रहे, यह सेक्स सिर्फ रिलीफ है। यह यौन सिर्फ ऊर्जा के भार से मुक्ति है। ____ अब बड़े मजे की बात है। ऊर्जा इकट्ठी करने में चौबीस घंटे खर्च करते हैं, उसे बचाने के लिए आठ घंटे सोते हैं। खाना कमाने के लिए जिंदगी भर मेहनत करते हैं। और फिर जब ऊर्जा आपके पास आती है तो आप उस ऊर्जा के भार से भारी हो जाते हैं। उसे फेंकने के लिए कोशिश करते हैं। यह वैसा ही है जैसे कोई व्यक्ति दिन भर धन कमाये और सांझ जाकर नदी में फेंक आये, क्योंकि दिन भर धन कमाने के लिए पागल रहे, सांझ पाया कि धन ने थैली को बोझिल कर दिया है। और अब बोझ बुरा मालूम पड़ता है तो बोझ से खाली हो लें और नदी में फेंक आये। __ हम ऊर्जा इकट्ठी करते हैं पहले, ऊर्जा न हो तो उसका श्रम करते हैं, और जब ऊर्जा पास में आ जाये तो ऊर्जा बोझिल हो जाती है, बर्डनसम हो जाती है, चित्त पर भारी हो जाती है, फिर उसको फेंकना पड़ता है। सेक्स, ऊर्जा को फेंकने के लिए हम उपयोग में लाते हैं। वह सिर्फ रिलीफ है। उससे हम फिर खाली हो जाते हैं। ___अब बड़ी एब्सर्ड जिंदगी है आदमी की। कल सुबह उठ कर वह फिर ऊर्जा इकट्ठी करने में लगेगा, कल सांझ तक वह फिर ऊर्जा इकट्ठी करेगा और जब उसके पास ऊर्जा इकट्ठी हो जायेगी तो उसे फेंक कर फिर रिलीफ पायेगा। अजीब पागलपन है! इकट्ठा करना, फेंकना, इकट्ठा करना, फेंकना। अर्थ क्या होगा इस जिंदगी का? प्रयोजन क्या होगा इस जिंदगी में? पायेंगे क्या इस जिंदगी में?
लेकिन यह हमें दिखाई नहीं पड़ता। अगर खाना न मिले तो हम परेशान हैं, खाना मिल जाये तो हम परेशान हैं। अगर शक्ति पास में न हो तो हम दुर्बल हैं, शक्ति पास में हो जाये तो दुर्बल होने को हम फिर आतुर हैं। आदमी एक एब्सडर्डिटी है। जैसा आदमी है, वह बिलकुल ही तर्कहीनता है। जैसा आदमी है, उससे तो जैसे बुद्धि का कोई संबंध नहीं है। जैसे कि कोई झरना सिर्फ इसलिए सरोवर बन रहा है कि जब बन जाये तो दीवाल टूटे और बह जाये। और दीवालें जब टूट जायें तो फिर दीवालें बनायी जायें, फिर झरना भरा जाये और फिर तोड़ा जाये, जिंदगी भर हम इकट्ठा करते और खोते हैं।
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ज्यों की त्यों धरि दीन्हीं चदरिया
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