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है जब बाल्टी पानी में डूबी होती है, और जैसे ही बाल्टी पानी के बाहर निकली कि खाली होनी शुरू हो जाती है । छेद हैं चारों तरफ, ऊपर तक आते-आते सिर्फ पानी के गिरने का शोरगुल भर होता है, पानी आता नहीं, खाली बाल्टी वापस लौट आती है ।
जन्म के क्षण में हम सब ऊर्जा से भरे हुए होते हैं। जब तक जन्म नहीं हुआ, तब तक हम भरी बाल्टी होते हैं। जन्म के साथ ही बाल्टी ऊपर उठी कुएं से, और गिरना शुरू हुआ। अगर ठीक से समझें तो जन्म के साथ ही हमारा मरना शुरू हो जाता है; हममें से कुछ रिक्त होना, खाली होना शुरू हो जाता है। हम फूटी बाल्टी की तरह खाली होने लगते हैं। जन्म का पहला क्षण मरने की शुरुआत है । खाली होना शुरू हो गया।
इसीलिए जन्म के पहले क्षण के बाद ही प्रत्येक व्यक्ति मरने के योग्य हो जाता है-कभी भी मर सकता है। अब यह बात दूसरी है कि योग्यता वह कब पूरी करेगा । फिर जीवन भर हम खाली, खाली, खाली होते चले जाते हैं। थोड़ा-बहुत जो जिंदगी में हमें भरेपन का अनुभव होता है वह शायद सुबह हम जब रात के बाद उठते हैं तो थोड़ी देर को लगता है, कुछ भरे हैं। रात भर में ऊर्जा थोड़ी-सी संकलित हो पाती है, क्योंकि इंद्रियों के द्वार बंद हो जाते हैं। आंखें बंद हो जाती हैं, हाथ शिथिल पड़ जाते हैं, कान सुनते नहीं, होठ बोलते नहीं, नाक सूंघती नहीं, सब बंद हो जाता है। द्वार बंद हो जाते हैं। इसलिए सुबह एक ताजगी मालूम पड़ती है। वह ताजगी, वह ताजगी रात को थोड़ी-सी ऊर्जा के ठहर जाने के कारण पता चल रही है।
अगर कोई व्यक्ति अपने पूरे जीवन की ऊर्जा को ठहरा ले तो वह जिस ताजगी का अनुभव करता है उसका हमें कोई भी पता नहीं है । उसका हमें कोई पता नहीं हो सकता । अगर हम अपनी जीवन भर की सब सुबह की ताजगी को इकट्ठा जोड़ लें तो भी उससे कुछ पता नहीं चल सकता। अगर एक व्यक्ति की नींद खो जाये तो फिर जीना मुश्किल हो जाता है, क्योंकि वह रात जो थोड़ी ऊर्जा इकट्ठी करता है वह भी बंद हो गयी। पंद्रह दिन नींद खो
ये तो आदमी पागल हो जाए। पंद्रह दिन भोजन न मिले तो चल सकता है। पंद्रह दिन नींद न मिले तो कठिनाई होगी।
अगर कोई बीमार है और सो न सके तो चिकित्सक पहले फिक्र करता है कि बीमारी को पीछे देख लेंगे, पहले नींद आ जाए। क्योंकि जिस ऊर्जा से बीमारी को ठीक होना है, वह संकलित होनी चाहिए, संगृहीत होनी चाहिए, इकट्ठी होनी चाहिए। हम सिर्फ ऊर्जा खो रहे हैं। और काम, ऊर्जा को खोने की विधि है। काम के बहुत रूप हैं, उसमें सर्वाधिक सघन रूप यौन है। इसलिए धीरे-धीरे काम और यौन, काम और सेक्स पर्यायवाची बन गये । भोजन से ऊर्जा मिलती है, नींद से ऊर्जा बचती है, व्यायाम से ऊर्जा जगती है, फिर इस ऊर्जा को हम खर्च करते हैं। इस ऊर्जा का बहुत-सा खर्च तो सिर्फ जीवन-व्यवस्था में व्यय हो जाता है।
इस ऊर्जा का बहुत-सा खर्च तो ऊर्जा को कल भी हम पैदा कर सकें, इसमें खर्च हो जाता है। इस ऊर्जा का बहुत-सा खर्च तो ऊर्जा भीतर जाकर पैदा हो सके... जब आप भोजन
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अकाम
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