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कारतूसों की तरह मर जाते हैं। इसलिए हमारी मृत्यु एक सौंदर्य नहीं हो पाती और हमारी मृत्यु एक अनुभव नहीं बन पाती। हमारी मृत्यु एक दुख, एक निस्तेज पीड़ा, एक नपुंसकता, एक इंपोटेंस बन जाती है। हम सब भांति टूट कर समाप्त हो जाते हैं। इसलिए मृत्यु में इतनी पीड़ा है। वह पीड़ा मृत्यु की नहीं है। वह पीड़ा निस्तेज खाली हो गये आदमी की है जो सब भांति रिक्त हो गया, जिसमें अब कुछ भी नहीं बचा, सिर्फ खाली खोल रह गया। इसलिए मौत दुख देती है। ___ लेकिन मौत भी आनंद दे देती है उसे, जो खाली नहीं, भरा हुआ है। हम भरे हुए कैसे रह पायें, इसी सूत्र को समझने के लिए अकाम है। लेकिन अकाम को समझने के पहले काम की समस्त यात्रा समझ लेनी चाहिए। काम किस तरह गति करता है हमारा! हम बाहर की तरफ कैसे बहते हैं, इसे समझ लेना जरूरी है। इसे हम समझ लें तो भीतर की तरफ बहना बड़ी सरल बात है, बड़ी आसान।
हजारों लाखों साल से हमें पता है कि पदार्थ अणुओं से बना है, एटम से बना है, लेकन हम अणु को तोड़ नहीं पाये थे। इस सदी में आकर हमने अणु को तोड़ लिया। अणु को तोड़ते ही बड़ी चमत्कारिक पूर्ण घटना घटी। और वह यह कि एक छोटे से अणु में, हाइड्रोजन के छोटे से अणु में, या किसी भी चीज के छोटे से अणु में, जो आंख से दिखाई नहीं पड़ता, इतनी ऊर्जा छिपी थी कि टूटते ही भयंकर शक्ति का जन्म हुआ। एक छोटे से अणु के विस्फोट से हिरोशिमा में एक लाख लोग तत्काल मृत्यु को उपलब्ध हो गये। एक छोटे से अणु में इतनी ऊर्जा छिपी थी भीतर, कि फूट पड़ा तो इतना विस्फोट हुआ। __विज्ञान ने अणु को तोड़ कर एक बहुत कीमती बात बता दी है, वह यह कि प्रत्येक चीज के भीतर अनंत ऊर्जा छिपी है। अगर टूट जाये तो विस्फोट हो जाता है और सब बाहर बह जाता है। अगर बंद हो जाये...लेकिन हमें तो कभी पता नहीं था कि बंद अणु में इतनी ऊर्जा छिपी है। विज्ञान ने जो काम किया है, धर्म ने उससे ठीक उल्टा काम बहुत पहले कर लिया है। विज्ञान ने तोड़ा है अणु, धर्म ने जोड़ा था। इसीलिए धर्म का नाम है : योग। योग का अर्थ है: जोड़। ___ मनुष्य की चेतना भी एक अणु है और उस अणु को हम अगर टूटा हुआ रहने दें तो उसमें से सब बह जाता है, अनंत ऊर्जा बह जाती है। अगर वह अणु जुड़ जाये, बंद हो जाये-एनालिसिस नहीं, विश्लेषण नहीं, टूटे नहीं-सिन्थेथिस हो जाये, संश्लिष्ट हो जाये, इंटीग्रेटेड हो जाये, बंद हो जाये, बिंदु बन जाये, अपने में बिंदु हो जाये, सब तरफ से बाहर खोना बंद हो जाये, तो अनंत ऊर्जा भीतर उपलब्ध हो जाती है। इस अनंत ऊर्जा की अनुभूति अनंत परमात्मा की अनुभूति है। इस अनंत ऊर्जा का अनुभव अनंत आनंद का अनुभव है। इस अनंत ऊर्जा का अनुभव अनंत वीर्य का अनुभव है। इस अनंत ऊर्जा के अनुभव के बाद फिर कुछ अनुभव करने को शेष नहीं रह जाता, सब अनुभव हो जाता है।
लेकिन समझना चाहिए कि आदमी टूटा हुआ अणु है। चेतना का टूटा हुआ अणु है। उसमें छेद है; जैसे कोई छेद वाली बाल्टी से पानी भरता हो। पानी भरा हुआ दिखाई पड़ता
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ज्यों की त्यों धरि दीन्हीं चदरिया
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