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SATH का अर्थ ही है कामना, डिजायर, इच्छा । जब भी हम कोई कामना करते हैं तो हमें बाहर की तरफ बहना पड़ता है, क्योंकि इच्छा कहीं बाहर तृप्ति की आशा बन जाती है। कुछ पाने को है बाहर, तो हमें बाहर की तरफ बहना पड़ता है। हम सब बाहर बहते हुए लोग हैं। हम सब कामनाएं हैं; वी आर डिजायर । चौबीस घंटे हम बाहर की तरफ बह रहे हैं, किसी को धन पाना है, किसी को यश पाना है, किसी को प्रेम पाना है । और बड़ा आश्चर्य तो यह है कि अगर किसी को परमात्मा भी पाना है तो भी वह बाहर की तरफ बहता चला जाता है । वह सोचता कि कहीं आकाश में परमात्मा बैठा है। किसी को मोक्ष पाना है तो वह भी सोचता है कहीं ऊपर मोक्ष है वह पाना है।
धर्म का बाहर से कोई भी संबंध नहीं है । इसलिए जिनके ईश्वर बाहर हों वह ठीक से समझ लें कि उनका धर्म से कोई नाता नहीं है। जिनका मोक्ष बाहर हो वह ठीक से समझ लें, वह धार्मिक नहीं हैं। जिनके पाने की कोई भी चीज बाहर हो वह समझ लें कि वह कामी हैं । सिर्फ एक ही स्थिति में काम से मुक्ति होती है और वह यह कि हम भीतर बहना शुरू हो जायें। बाहर कोई भी ऑबजेक्ट, बाहर कोई भी पाने की चीज, हमारी ऊर्जा को बाहर की तरफ ले जाती है। और हम धीरे - धीरे खाली होते हैं, समाप्त हो जाते हैं । फिर दूसरा जन्म, फिर एक ऊर्जा लेकर पैदा होते हैं, फिर बाहर की तरफ बहते हैं, फिर समाप्त हो जाते हैं। फिर तीसरा जन्म, फिर ऊर्जा लेकर पैदा होते हैं, फिर बाहर की तरफ बहते हैं और समाप्त हो जाते हैं।
जन्म के साथ हम शक्ति लेकर आते हैं। मृत्यु के साथ हम शक्ति खोकर वापिस लौट जाते हैं। जो व्यक्ति मृत्यु के साथ भी शक्ति लेकर वापिस लौटता है उसे फिर आने की जरूरत नहीं रह जाती है। जन्म के साथ सभी शक्ति लेकर आते हैं । मृत्यु के साथ अधिकतम शक्ि खोकर, निस्तेज, खाली कारतूस, चले हुए कारतूस, जिसकी खोल रह गयी है गोली तो जा चुकी है, उस खोल को लेकर वापिस लौट जाते हैं । जो व्यक्ति मरते क्षण में भी अपनी पूरी ऊर्जा को बचा कर ले जाता है उसे लौटने की जरूरत नहीं पड़ती। जो कबीर की भांति मरते क्षण में कह सकता है कि 'ज्यों की त्यों धरि दीन्हीं चदरिया'। कुछ खर्च नहीं किया, कुछ खोया नहीं, दौड़े नहीं। चादर संभालो, जैसी दी थी वैसी ही वापिस लौटा देते हैं । जो मृत्यु केक्षण में बिना कुछ खोये वैसा ही वापस लौट जाता है जैसा जन्म के क्षण में आया था, उसे वापिस जन्म लेने की जरूरत नहीं रह जाती। अकाम, जन्म-मृत्यु से मुक्ति है। काम, बारबार जन्म में लौट आना है। कारण है... ।
कोई कामना कभी ठीक अर्थों में पूरी नहीं होती, हो नहीं सकती। और जो बाहर की तरफ दौड़ने का आदी हो गया है, जब भी कोई कामना पूरी होने के करीब होती है तब तक वह नयी कामना बना लेता है। क्योंकि फिर बाहर की तरफ दौड़ेगा कैसे ? बाहर की तरफ दौड़ना ही जिसकी जिंदगी बन गयी है । वह, एक इच्छा पूरी हुई नहीं कि दूसरी को जन्मा लेता है। बल्कि एक के पूरे होने के साथ अनेक को जन्मा लेता है, फिर दौड़ना शुरू कर देता है। हम बाहर की तरफ दौड़ती हुई ऊर्जाएं हैं। आऊट गोइंग एनर्जीस। इसलिए हम खाली
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अकाम
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