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और जिस आदमी ने व्यक्तित्व चुराने बंद कर दिए, जिसने चेहरे चुराने बंद कर दिए, जिसने आचरण चुराने बंद कर दिए, वह आदमी वस्तुएं नहीं चुरा सकता। वह असंभव है। वह असंभव है, उसका कोई उपाय नहीं रह जाता। जिसने इतनी गहरी चोरियां छोड़ दी, वह इन क्षुद्र चोरियों के लिए नहीं जाएगा; लेकिन हम क्षुद्र चोरियां छोड़ने में लगे रहते हैं। ____ एक मित्र मेरे पास आये, उन्होंने मुझसे कहा कि मैं रिश्वत नहीं लेता हूं। बड़े आफिसर हैं। मैंने कहा, अगर पांच रुपये कोई देने आये? उन्होंने कहा, क्या आप फिजूल की बातें करते हैं। मैं लेता ही नहीं रिश्वत। मैंने कहा, कोई पांच सौ देने आये? उन्होंने उतने जोर से नहीं कहा कि क्या फिजूल की बातें करते हैं। उन्होंने कहा, नहीं, नहीं, मैं लेता ही नहीं हूं। मैंने पूछा, अगर कोई पांच हजार रुपया लेकर आये? तो उन्होंने मुझे गौर से देखा, संदेह उनके मन में आ गया। मैंने कहा, अगर कोई पांच लाख लेकर आये? उन्होंने कहा, फिर सोचना पड़ेगा। ___ तो हमारे चोर होने में हो सकता है मात्राएं हों, डिग्रीज हों। हो सकता है आप दो पैसे न चुराते हों, लेकिन इससे यह मत समझ लेना कि आप अचोर हैं। इससे क्या फर्क पड़ता है कि आपने दो पैसे चुराये कि दो लाख चुराये। चोरी में कोई मात्रा हो सकती है? चोरी कम
और ज्यादा हो सकती है? दो पैसे की चोरी कम और दो लाख की ज्यादा! दो पैसा कम होंगे, दो लाख ज्यादा होंगे, चोरी तो एक-सी है। चोरी कैसे भिन्न, कम और ज्यादा हो सकती है? चोरी का एक्ट तो टोटल है। दो पैसे चुराऊं तो भी मैं उतना ही चोर होता हूं जितना दो लाख चुराऊं।
तो यह हो सकता है आपके चोरी के अपने मापदंड हैं, मेरे चोरी के अपने मापदंड हैं। मैं दो पैसे चुराता हूं, आप दो लाख चुराते हैं। दो लाख चुरानेवाले, दो पैसे चुराने वाले को जेल में बंद कर सकते हैं। कर सकते हैं, क्योंकि दो पैसा वाले अभी जेल नहीं बना सकते, दो लाख वाले जेल बना सकते हैं। दो लाख वाले चोरों को पकड़ा नहीं जा सकता, क्योंकि दो लाख वाले चोर दो लाख रुपया किसी को भी चोरी में दे सकते हैं। तो जो मजिस्ट्रेट दो पैसेवाले चोर को सजा दे दे, वह दो लाख वाले चोर को कैसे सजा दे? क्योंकि तब तक तो वह मजिस्ट्रेट भी चोर हो जाएगा। दो लाख के लिए तो वह भी चोरी को राजी हो सकता है। तो बड़े चोर छोटे चोरों को फंसाये चले जाते हैं। बड़े चोर दीवारों के बाहर, छोटे चोर दीवारों के भीतर। होशियार चोर दीवारों के बाहर, नासमझ चोर दीवारों के भीतर। लेकिन पूरा समाज चोर है।
और यह चोरी जब तक हम वस्तुओं के संबंध में ही सोचते रहेंगे तब तक मिटनेवाली नहीं है। यह हो सकता है कि मैं सब छोड़ कर भाग जाऊं और कहूं कि मैं चोरी नहीं करूंगा। लेकिन मेरा भोजन कोई चोर लायेगा, मेरे कपड़े कोई चोर लायेगा, मेरे रहने का आश्रम कोई चोर बनायेगा। इससे क्या फर्क पड़ता है। सिर्फ मैं और भी होशियार चोर हूं। मैं खुद चोरी नहीं करता हूं, दूसरे से करवाता हूं। और कोई फर्क नहीं पड़ जाएगा। लेकिन मैं जिम्मेवारी के बाहर नहीं भाग सकता। चोरी है, समाज चोर है, समाज चोर रहेगा। तब तक, जब तक
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ज्यों की त्यों धरि दीन्हीं चदरिया
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