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________________ ठीक नहीं हूं। आदमी अच्छा नहीं हूं, बुरे काम करता हूं, लेकिन आत्मा तो शुद्ध-बुद्ध है। आत्मा तो शुद्ध ही है सदा। यह सब आचरण, तो आचरण बदल लूंगा, आप उपदेश करें। हम सब उपदेश ग्रहण करने को बहुत आतुर और उत्सुक हैं। फिर हम सोचते हैं, उसके अनुसार आचरण बना लेंगे। यह आचरण वैसा ही होगा जैसा मंच पर अभिनेता का होता है। पहले उसे स्क्रिप्ट मिल जाती है, पहले उसे ढांचा मिल जाता है नाटक का, फिर उसको कंठस्थ करता है। फिर रिहर्सल करता है। फिर आकर मंच पर दिखा देता है करके कि यह रहा। अभिनय का मतलब है विचार के अनुसार आचरण, लेकिन आत्मा का मतलब कुछ और है, आचरण के अनुसार विचार। अगर बुरा आचरण है तो बुरा विचार ही करना। टूट जाएंगे आप। आप का व्यक्तित्व बच नहीं सकेगा, बिखर जाएगा। और जिस दिन आपका पुराना व्यक्तित्व पूरा बिखर जाएगा उस दिन उस खाली जगह में उसका जन्म होगा जो आपका असली चेहरा है। जापान में झेन फकीरों के पास अगर कोई जाता है तो वे बहुत से सवाल उससे पूछते हैं। उनमें से एक सवाल यह भी है कि कृपा करके अपना ओरिजिनल चेहरा प्रकट कीजिए, अपना असली चेहरा दिखाइये? अब नया आदमी आया है उससे कोई फकीर कहता है, असली चेहरा दिखाइये? तो वह कहता है, यही मेरा चेहरा है। तो फकीर कहता है. अगर यही तेरा चेहरा है तो यहां आने की कोई जरूरत नहीं। जा खोज–असली चेहरा लेकर आ। कभी-कभी कुछ हिम्मतवर लोग असली चेहरा लेकर आ जाते हैं। लेकिन वे फकीर भी बहुत अदभुत हैं, वे कहे ही चले जाते हैं कि माना कि यह पिछले से ज्यादा ऑथेंटिक है, पिछले वाले से ज्यादा गहरा है, लेकिन फिर भी असली नहीं है। अपना असली लेकर आ। उस चेहरे को ला, जो जन्म के पहले तेरे पास था और मौत के बाद तेरे पास होगा। जन्म के पहले कौन-सा चेहरा तेरे पास था, उसे ले आ। या मरने के बाद तेरे पास फिर जो चेहरा होगा, उसे ले आ। कृपा करके यह बीच के चेहरों को यहां मत ला। और जब कोई आदमी आकर बैठ जाता है फेसलेस, बिना चेहरे के, तो वह फकीर कहता है, ठीक है, अब तू असली जगह आ गया। ___ बड़ी उपलब्धि है फेसलेसनेस। लेकिन हम बहुत डरते हैं। अगर चेहरा खो जाये तो हम बहुत डरते हैं, हम पूछते हैं इससे बड़ी मुश्किल हो गई। फिर हम जल्दी चेहरा बनाने में लगते हैं। चेहरा खोना ही चाहिए अगर चोरी खोनी है। और वह क्षण आना ही चाहिए जहां आपको पक्का न रह जाये कि मैं कौन हूं। अगर आपको जानना है कि आप कौन हैं, चोर चेहरों को हटाइए, चाहे महावीर से लिये हों, चाहे बुद्ध से, चाहे कृष्ण से, चाहे मुसलमान के, चाहे जैन के, चाहे हिंदू के। उन चेहरों को हटाइए और उसको खोजिए जो आपका है। और जिस दिन आपके सारे चेहरे गिर जायेंगे, अचानक आपके सामने वह रूप प्रकट हो जाता है जो आपका है। जैसे ही वह रूप प्रकट होता है आप अचौर्य को उपलब्ध हो जाते हैं। अचौर्य Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004032
Book TitlePanch Mahavrat Pravachan aur Prashnottari - Jyo ki Tyo Dhari Dinhi Chadariya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year2012
Total Pages330
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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