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में बुरे आदमी के साथ नहीं जी सकता। आप भी अपने बुरे आदमी के साथ नहीं जी सकते।
और एक दफा यह पता चल जाये कि मैं एक बुरी पर्त के साथ जी रहा हूं तो इस पर्त को उखाड़ फेंकने में उतनी ही आसानी होगी जैसे पैर से कांटा निकालने में होती है। इस बुरी पर्त
को फेंक देने में, इस व्यक्तित्व को, इस पर्सनैलिटी को, इस प्याज की पर्त को उखाड़ कर फेंक देने में उतनी ही आसानी होगी जैसे शरीर से मैल को अलग कर देने में होती है।
लेकिन अगर कोई आदमी अपने मैल को सोना समझ रहा हो तब कठिनाई हो जाती है। कोई आदमी अपनी बीमारी को अगर मूल्य दे रहा हो, आभूषण समझ रहा हो, तब बड़ी कठिनाई हो जाती है। अब अगर हम किसी बच्ची की नाक को छेदें तो उसे तकलीफ होगी, लेकिन सोने के आभूषण की आकांक्षा में नाक छिदवाने के लिए कोई भी तैयार हो जाता है। अब शरीर को छेदना पागलपन है। लेकिन सोने की आशा में हम पागलपन करने को भी तैयार हो जाते हैं। अब शरीर को छेदना कुरूपता है, लेकिन सौंदर्य के खयाल में, भ्रम में, हम शरीर को छेदने को राजी हो जाते हैं। ___ हम बुरे होने को राजी हो गये हैं, क्योंकि बुरे होने के पीछे हम सोने की कील लगाये हुए हैं विचारों की। विचार के अनुसार आचरण कभी मत करना, आचरण के अनुसार विचार करना और तब आपके व्यक्तित्व की सीधी और सच्ची सफाई हो जायेगी। आप जो होंगे वही होंगे, धोखे का उपाय नहीं रह जायेगा। दूसरे के धोखे का डर नहीं है, अपने को धोखा देने का उपाय नहीं रह जायेगा। आप अपने चेहरों को पहचान सकेंगे। और जिस दिन यह चेहरे चारों तरफ से पहचान में आ जाते हैं और इनकी कुरूपता, इनकी गंदगी और इनकी दुर्गंध, इनका कोढ़, जब चारों तरफ से दिखाई पड़ने लगता है, बाहर और भीतर, तब आप इसके साथ रह नहीं सकते। यह ऐसे ही हो जाता है, जब किसी के कपड़ों में आग लगी हो और वह अपने कपड़ों को फेंक कर नग्न हो जाये। ठीक ऐसे ही ट्रांसफार्मेशन होता है। ऐसे ही क्रांति घटित होती है। जब सारा व्यक्तित्व रुग्ण और आग लगा मालूम होता है तब आप उसे फेंक देते हैं। उसे फेंकने के लिए फिर एक क्षण भी विचार नहीं करना पड़ता कि कल फेंदूंगा। ऐसा नहीं है...।
बुद्ध के पास कोई आया और उसने कहा कि महाराज कुछ उपदेश दें। तो बुद्ध ने कहा, करोगे अभी कि कल? उसने कहा, अभी तो बहुत मुश्किल है। तो बुद्ध ने कहा, फिर कल ही आना। जिस दिन करना हो उसी दिन आ जाना। उसने कहा कि नहीं आप उपदेश तो दे दें। वक्त पर काम पड़ेगा, आप मिले न मिले। कभी उपयोग में जरूर लाऊंगा।
बुद्ध ने कहा कि मैं एक गांव से गुजरता था और घर में आग लग गई थी। मैंने उस घर के लोगों को कहा, अभी मत भागो कल भाग जाना। वे कहने लगे, पागल हो गये हो तुम! घर में आग लगी है, कल तक कैसे रुका जा सकता है। तो बुद्ध ने कहा कि जहां तक मैं समझता हं. तम जो हो अभी मानते हो कि ठीक हो. इसलिए कल तक ठहरा सकते हो। और जब तुम ठीक ही हो तो मुझे क्यों परेशान करते हो? मैं क्यों व्यर्थ की बातें तुमसे कहूं? जिस दिन तुम्हें पता लगे कि तुम ठीक नहीं हो...। नहीं, उस आदमी ने कहा, मुझे पता तो है मैं
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ज्यों की त्यों धरि दीन्हीं चदरिया
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