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एक तरकीब की है। एक टेक्नीकल तरकीब है हमारी कि हम विचार अच्छे करते हैं, आचरण बुरा करते हैं। इससे सुविधा रहती है। सुविधा यह रहती है कि हम अपने भीतर मानते ही चले जाते हैं कि हम आदमी अच्छे हैं। अगर आपको मैं गाली दूं तो मैं यह नहीं कहूंगा कि मैं गाली देने वाला आदमी हूं; मैं कहूंगा, मैं तो गाली कभी नहीं देता, लेकिन इस आदमी ने गाली दी इसलिए मुझे गाली देनी पड़ी। यही आदमी जिम्मेवार है मेरी गाली को पैदा करवाने में। जब आप किसी से लड़ते हैं तो आप यह नहीं कहते हैं कि लड़ाई मेरे भीतर है। आप कहते हैं, इस आदमी ने लड़ाई की सिच्युएशन पैदा कर दी। मुझे लड़ना पड़ा। ऐसे आदमी मैं लड़ने वाला नहीं हूं। और इसको आप विश्वास भी दे लेंगे क्योंकि भीतर आप कभी लड़ने का विचार तो करते नहीं। विचार तो सदा अहिंसा, अचोरी, अपरिग्रह का करते हैं। शास्त्र तो अहिंसा, अचोरी, अपरिग्रह, ब्रह्मचर्य का पढ़ते हैं। तो विचार तो बड़े अच्छे हैं। आचरण! तो आचरण के लिए दसरा जिम्मेवार हो जाता है। आप बच जाते हैं। फिर एक और सविधा होती है, जब विचार अच्छे हैं तो आज नहीं कल ताकत जुटा कर, संकल्प पैदा करके, स्थिति ठीक बनाकर, आचरण भी बदल लेंगे। तो पोस्टपोनमेंट किया जा सकता है।
ध्यान रहे, जिस आदमी को जिंदगी में ट्रांसफार्मेशन लाना हो उसे पोस्टपोनमेंट से बचना चाहिए। स्थगन से बचना चाहिए। वह बहुत कनिंग, बहुत चालाक तरकीब है। एक आदमी कहता है, मैं हूं तो अभी हिंसक लेकिन अहिंसा को मानता हं। धीरे-धीरे अहिंसक हो जाऊंगा। वह कहेगा, कल हो जाऊंगा, परसों हो जाऊंगा। इस जन्म में हो जाऊंगा, अगले जन्म में हो जाऊंगा, वह उसे पोस्टपोन करता जायेगा और रहेगा हिंसक। लेकिन हिंसक होने की जो पीड़ा है उससे बच जायेगा; क्योंकि अहिंसक होने की आशा उसकी पीड़ा को कम कर देगी। वह कंसोलेटरी है।
तो मैं कहता हूं, चोरी करना तो चोरी का विचार भी करना। और जितने अचोरी के शास्त्र हों उनमें आग लगा देना। और घर में दीवालों पर लिखना कि चोरी परमधर्म है। और अपने हृदय में जानना कि चोरी परम कर्तव्य है। जो चोरी नहीं करता है वह गलती करता है।
अगर आप विचार भी चोरी का करें और आचरण भी चोरी का करें तो आप अपने साथ जी न सकेंगे। क्योंकि तब अपने चोर के साथ कोई भी नहीं जी सकता। और आप पक्के चोर हो जायेंगे। पूरे चोर हो जायेंगे। इसके साथ जीना मुश्किल हो जायेगा। आपकी पूरी पर्सनैलिटी, आचरण में, विचार में, आपका पूरा व्यक्तित्व चोर हो जायेगा। और आपकी आत्मा को इस चोर के साथ जीना मुश्किल हो जायेगा। एक क्षण जीना मुश्किल है।
लेकिन जीने की तरकीब है। वह तरकीब यह है कि हम कल ठीक कर लेंगे। विचार तो अच्छे हैं, आचरण बुरा है। आचरण दूसरों के कारण बुरा है, इस तरह के खयाल को बहुत तरह के प्रमाण भी मिल जाते हैं। जैसे एक आदमी जंगल में चला जाये तो वहां क्रोध नहीं करता। वह कहता है, देखो, क्रोध दूसरे लोग करवाते थे। अब मैं जंगल में आ गया, अब मैं कहां क्रोध कर रहा हूं!
इसलिए साधु जंगल की तरफ भागता है। वहां उसे आश्वासन हो जाता है कि मैं
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ज्यों की त्यों धरि दीन्हीं चदरिया
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