SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 72
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अपवित्रता नहीं होगी, चेहरा लिये चले गये तो ज्यादा होगी। लेकिन उसका किसी को पता नहीं चलता। आपको मैं कहना चाहंगा कि जब आप चेहरे बदलते हैं तो आप जरा होश रखना कि आप कब बदलते हैं। और इसका बड़ा मजा होगा। अब तक आप दूसरों पर हंसे हैं, तब आप अपने पर हंसना शुरू हो जायेंगे। और जब आप जान कर चेहरा बदलेंगे तो चेहरा बदलना मुश्किल हो जायेगा, और धीरे-धीरे आप कहेंगे कि यह क्या पागलपन है? यह मैं क्या अभिनय कर रहा हूं? धीरे-धीरे चेहरा बदलना कठिन हो जायेगा और जिस दिन चेहरा बदलना कठिन होगा और बीच का अंतराल बढ़ेगा, और कभी-कभी आप बिना चेहरे के रह जायेंगे तब आप का ओरिजिनल फेस जन्मेगा। आपके भीतर आपका चेहरा आना शरू होगा। ___ तो एक तो चौबीस घंटे बदलते हुए चेहरों का खयाल रखना, और दूसरा किसी का चेहरा- महावीर का, बुद्ध का, कृष्ण का, क्राइस्ट का, अपना बनाने की कोशिश मत करना। भूल कर मत करना। अनुयायी बनना ही मत, अन्यथा चोर बने बिना कोई उपाय ही नहीं है। ___ अनुयायी दो चोरी करता है। चेहरा चुराता है जो बहुत सिनसियर अनुयायी होता है। कहना चाहिए जो बहुत सिनसियर चोर होता है, जो बहुत ईमानदारी से चोरी करता है, वह चेहरे चुराता है। जो बेईमानी से चेहरे चुराता है वह चेहरे नहीं चुराता, सिर्फ विचार चुराता है। वह महावीर का चेहरा नहीं ओढ़ता, सिर्फ महावीर का विचार पकड़ लेता है। पंडित के पास सिर्फ विचार की चोरी होती है, तथाकथित साधु के पास चेहरों की चोरी होती है। तो ध्यान रखना, कुछ कमजोर चोर हैं। वह कहते हैं, चेहरा तो मुश्किल है महावीर का लगाना, लेकिन अहिंसा परमधर्म है, यह तो हम अपने भीतर लिख ही सकते हैं। महावीर का शास्त्र तो पढ़ ही सकते हैं। कृष्ण का चेहरा लगाकर तो जरा कठिनाई है, लेकिन कृष्ण की गीता तो कंठस्थ कर ही सकते हैं। तो दो तरह की चोरी है-विचार की, चेहरे की। चेहरे की चोरी वाले आदमी को हम बहुत सिनसियर चोर और ईमानदार चोर कहते हैं। क्योंकि इस बेचारे आदमी ने जैसा विचारा वैसा किया भी। ध्यान रखें, जिसने विचार से कुछ किया है वह आदमी चेहरा ओढ़ लेगा। धर्म का कोई संबंध किसी सिद्धांत को तय करके उसके अनुसरण करने से नहीं है। नहीं तो बेंजामिन फ्रेंकलिन वाली घटना घटेगी, एपियरेंसेज पैदा हो जायेंगे, दिखावे पैदा हो जायेंगे। __ अक्सर हम कहते हैं, जो विचारते हो उसके अनुसार आचरण करो। यह चोर बनाने का सूत्र है, लेकिन सिनसियर, ईमानदार चोर इससे पैदा होते हैं। हम लोगों से कहते हैं, जो विचारते हो उसका आचरण भी करो, पर हमें पहले यह तो पता लगा लेना चाहिए कि कहीं विचार चोरी से तो नहीं आया है ? अन्यथा आचरण और भी गहरी चोरी में ले जायेगा। जब हम किसी से कहते हैं कि इस आदमी का विचार और आचरण बिलकुल एक-सा है, तब हमें पूछ लेना चाहिए कि इसके आचरण से इसका विचार आया है, या इसके विचार से इसका आचरण आया है। अगर इसके आचरण से इसका विचार आया है तब तो यह धार्मिक आदमी 60 ज्यों की त्यों धरि दीन्हीं चदरिया Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004032
Book TitlePanch Mahavrat Pravachan aur Prashnottari - Jyo ki Tyo Dhari Dinhi Chadariya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year2012
Total Pages330
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy