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रहा है। दोनों चेहरे एक साथ संभालने हों तो बेचारा क्या कर सकता है? गिरगिट हो गया वह। कह रहा है कि तुम दोनों एक दूसरे से बढ़कर हो।
चौबीस घंटे में हम चौबीस चेहरे बदल रहे हैं। चौबीस नहीं और ज्यादा बदलने पड़ते हैं, और यह चेहरों की बदलाहट तनाव पैदा करती है। टेंशन जो है वह चेहरों की बदलाहट है। जिस आदमी के पास एक चेहरा है उस आदमी को तनाव नहीं होता। तनाव का कोई कारण नहीं रहा। तनाव सदा होता है चेहरों को बार-बार बदलने से। इतनी बार बदलना पड़ता है कि बहुत मुश्किल हो जाती है और बीच-बीच जो गैप पड़ता है, जब आप एक चेहरे को उतार कर दूसरा लाते हैं तो बीच का जो गैप होता है वह बहुत एंग्जाइटी पैदा करता है; क्योंकि उस वक्त आपके पास कोई चेहरा नहीं होता है, उस वक्त आप बड़ी कठिनाई में होते हैं। वह ठीक कहता है अमरीकी अभिनेता, 'टु स्टेप इन ए रोल इज़ ईज़ीअर बट टु स्टेप आउट इज़ आईअस।' बाहर होना किसी रोल के बड़ा मुश्किल है, लेकिन हमें तो चौबीस घंटा करना पड़ता है। चेहरों को बदलना पड़ता है, बदलना पड़ता है, बदलना पड़ता है। लेकिन आदमी बहत होशियार है। जैसे पहले गाड़ियों में कन्वशनल
र है। जैसे पहले गाड़ियों में कन्वेंशनल गेयर था तो बदलना पड़ता था। अब ऑटोमैटिक गेयर है, उसे नहीं बदलना पड़ता। जो बहुत कुशल लोग हैं उनके पास ऑटोमैटिक गेयर हैं। वे चेहरे बदलते नहीं, चेहरे बदल जाते हैं। चेहरे के बदलने के हमने ऑटोमैटिक गेयर तय कर लिये हैं, अब हमें बदलना नहीं पड़ता। नौकर आया कि चेहरा बदला। मालिक आया कि चेहरा बदला। पत्नी आई कि चेहरा और हुआ। प्रेयसी आई कि चेहरा और हुआ। मित्र आया तो चेहरा और हुआ। अब चेहरा बदलता रहता है। पुराने आदमी को धार्मिक होने में बड़ी सुविधा थी। उसके पास कनवेंशनल गेयर थे। उसको चेहरा बदलना पड़ता था, इसलिए यह भी पता चलता था कि मैं चेहरा बदल रहा हूं। आधुनिक सभ्यता ने कन्वेंशनल गेयर हटा दिये, जिनको बदलना पड़ता था। अब ऑटोमैटिक गेयर हैं। सभ्य आदमी और असभ्य आदमी में मैं इतना ही फर्क करता हूं, कनवेंशनल गेयर और ऑटोमैटिक गेयर का, और कोई फर्क नहीं करता हूं।
असभ्य आदमी को चेहरा बदलना पड़ता है। बदलना पड़ने की वजह से उसे हर बार पता चलता है कि मैं कुछ कर रहा हूं। यह मैं क्या कर रहा हूं, उसे कठिनाई होती है। सभ्य आदमी का मतलब है, सभ्यता का अर्थ है, ऐसा प्रशिक्षण जो आपको चेहरे बदलने के कष्ट से बचा देता है। ऐसी शिक्षा जो आपको चेहरे बदलने के कष्ट से बचा देती है। और चेहरे अपने आप बदलने लगते हैं। इसलिए सभ्य आदमी का धार्मिक होना मुश्किल हो जाता है। क्योंकि उसको चोरी का पता ही नहीं चलता। उसे गैप का पता ही नहीं चलता, वह जो दो चेहरों के बीच में क्षण गुजरता है, जहां खाली जगह छूट जाती है, उसका उसे पता नहीं चलता। तनाव तो बढ़ता जाता है सभ्य आदमी का, क्योंकि तनाव चेहरे बदलने से पैदा होता है। लेकिन यह चेहरे न बदलूं यह बोध पैदा नहीं होता, क्योंकि गेयर ऑटोमैटिक है। वह अपने आप हो जाता है, इसलिए जितना सभ्य आदमी, उतना धर्म से दूर जाता हुआ मालूम पड़ता है।
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ज्यों की त्यों धरि दीन्हीं चदरिया
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