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यूनान में एक फकीर था, गुरजिएफ। वह तो जब भी कोई आदमी वहां आता तो उससे पहले पूछता कि भले आदमी हो कि बुरे आदमी हो? शायद ही कभी कोई आदमी कहता कि मैं बुरा आदमी हूं। क्योंकि इतना भला आदमी बहुत मुश्किल है खोजना जो कह सके कि मैं बुरा आदमी हूं। अक्सर तो लोग कहते कि कैसी आप बात पूछते हैं! भला हूं, साधना करने आया हूं, साधना करने ही क्यों आता अगर भला न होता? हालांकि हालत उल्टी है, भला आदमी किसलिए साधना करने जाएगा?
गुरजिएफ कहता, पहली साधना यह रहेगी कि पंद्रह दिन शराब पीनी पड़ेगी। अक्सर तो भला आदमी भाग जाता। कल्पना भी नहीं कर सकते कि कोई फकीर और शराब पीने के लिए कहेगा। लेकिन अर्थपर्ण थी उस गरजिएफ की बात। वह कहता था पंद्रह दिन तो मैं शराब पिलाऊंगा ताकि मैं तुम्हारा प्राइवेट फेस देख सकू। अन्यथा मैं किसके साथ बात करूं, अन्यथा मैं किसके साथ व्यवहार करूं, अन्यथा मैं किसको बदलूं? क्योंकि तुम जो दिखाई पड़ रहे हो, अगर इसको मैंने बदला तो बेकार मेहनत हो जाएगी, क्योंकि तुम तो यह हो ही नहीं। यह बदलाहट बेकार। यह रंगरोगन मैं कर दूंगा, यह तुम्हारे मुखौटे पर हो जाएगा, तुम्हारे चेहरे से इसका कोई संबंध नहीं है। और मुखौटा बिलकुल अलग चीज है, तुम उसे कभी भी उतार कर रख सकते हो, बदल सकते हो। तुम मुझसे बेकार मेहनत मत करवाओ। पहले मुझे तुम्हारा ओरिजिनल फेस, तुम्हारा असली चेहरा देख लेने दो।
अक्सर तो अच्छा आदमी भाग जाता शराब का नाम सुन कर ही। भागना ही बता देता कि उस आदमी के भीतर कुछ छिपा है जो प्रकट होने से डरेगा। लेकिन अगर कोई रुक जाता तो बड़ी हैरानी होती। पंद्रह दिन गुरजिएफ उसे शराब ही पिलाये जाता। जितनी ज्यादा से ज्यादा पिला सकता, पिलाता। और उसके असली चेहरे को खोजता।
कैसा दुर्भाग्य कि आदमी के असली चेहरे को खोजने के लिए उसे बेहोश करना पड़ता है। इतनी परतें हैं नकली चेहरों की, चोरी इतनी गहरी है, इतनी लंबी है, अनंत जन्मों की है कि असली चेहरा बहुत-बहुत, बहुत पीछे छिप गया है। एक मुखौटा उतारो तो दूसरा उसके नीचे है। प्याज की तरह आदमी हो गया है। एक छिलका निकालो फिर छिलका, और छिलका निकालो फिर छिलका।
आप इस भ्रम में मत रहना कि प्याज को खोज लेंगे। आप छिलके निकालते जाओ, निकालते जाओ, निकालते जाओ, बस छिलके ही निकलते चले जाएंगे। आखिर में कुछ भी नहीं बचेगा। आखिरी छिलका निकल जाएगा। आप पूछोगे प्याज कहां है? पता चलेगा छिलकों का जोड़ ही प्याज थी, प्याज का अपना कोई अस्तित्व न था।
हम करीब-करीब अनंत जन्मों में इतने व्यक्तित्वों की चोरी किये हैं, हमने इतने मुखौटे ओढ़े हैं कि हमारा अपना तो कोई चेहरा नहीं रह गया है। अगर हमारे छिलके उतारे जाएंगे तो आखिर में शून्य रह जाएगा। लेकिन उसी शून्य से शुरू करना पड़ेगा, क्योंकि उसी शून्य से अचौर्य में गति होगी। उसके पहले कोई गति नहीं हो सकती। अगर एक आदमी को यह पता चल जाये कि मेरा कोई चेहरा ही नहीं है, तो बड़ी उपलब्धि है यह।
ज्यों की त्यों धरि दीन्हीं चदरिया
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