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थे। और उस चेहरे से बने हुए व्यक्तित्व को पर्सनैलिटी कहते थे। पर्सनैलिटी का मतलब था जो वो नहीं है वह। पर्सनैलिटी का मतलब कि जो आप नहीं हैं।
इसलिए जितनी बड़ी पर्सनैलिटी हो उतनी बड़ी चोरी होगी। बहुत कुछ चुराया हुआ होगा। एक साधु है, वह महावीर की पर्सनैलिटी लिये हुए है। ठीक महावीर जैसा नग्न खड़ा हो गया है। ठीक महावीर जैसा चलता, उठता, बैठता है। ठीक महावीर जैसा खाता-पीता है। ठीक महावीर के शब्द बोलता है। बिलकुल महावीर हो गया है। लेकिन यह होना बाहर से ही हो सकता है। भीतर से तो वह सिर्फ वही हो सकता है जो है, यह पर्सनैलिटी है।
इसलिए चोरों के पास अक्सर अपना व्यक्तित्व होता है। साधुओं के पास अपना होता ही नहीं। अगर जेलखाने में जायें और चोरों की आंखों में झांकें तो ऐसा लगेगा कि वे जो हैं, हैं। मंदिरों में जायें और साधुओं की आंखों में झांकें तो लगेगा कि वे जो नहीं हैं वही हैं।
बुरा आदमी अक्सर वही होता है, जो है। क्योंकि बुरे को कोई भी ओढ़ता नहीं। अच्छा आदमी अक्सर वही होता है जो नहीं है, क्योंकि अच्छे को ओढ़ने का मन होता है। अच्छा होना तो बहुत कठिन है, ओढ़ना बहुत आसान है। अच्छा होना तो तपश्चर्या है, अच्छा होना आर्डअस है। लेकिन अच्छे को ओढ़ लेना खेल है, सुविधा है, बहुत कनवीनिएंट है। फिर अच्छे होने के साथ बड़ी कठिनाइयां हैं; क्योंकि दुनिया अच्छी नहीं है। इसलिए अच्छा होने वाला आदमी दुनिया के साथ मुसीबत में पड़ जाता है। टु बी मॉरल इन ए इम्मॉरल सोसायटी, टु बी गुड इन ए बैड सोसायटी, एक अनैतिक समाज में नैतिक होना बड़ी दुविधा है। एक बुरे समाज में अच्छे होना बड़ी कठिनाई मोल लेना है। यही है तपश्चर्या साधु की।
साधु की तपश्चर्या नंगा खड़ा हो जाना नहीं है। साधु की तपश्चर्या भूखा रह जाना नहीं है। ये बड़ी सस्ती और सरल बातें हैं, जो कोई भी नासमझ साध सकता है। असल में समझ हो तो साधना मुश्किल, नासमझी हो तो साधना आसान। साधु की तपश्चर्या है : टु बी मॉरल इन ए इम्मॉरल वर्ल्ड, नैतिक होना अनैतिक जगत में तपश्चर्या है। क्योंकि चारों तरफ से चोट पड़ेगी। इसलिए सुविधापूर्ण है वस्त्र ओढ़ लेना। नैतिकता के वस्त्र ओढ़ो, अनैतिक रहो। अनैतिक रहो, दुनिया से कोई तकलीफ नहीं होगी। नैतिकता के वस्त्र ओढ़ो, बाजारों में, सार्वजनिक स्थानों में। __इसलिए हमारे पास दो तरह के चेहरे हैं : प्राइवेट फेसेस, पब्लिक फेसेस। और नियम है कि वह जो व्यक्तिगत चेहरा है, निजी चेहरा है, उसे कभी सार्वजनिक स्थान में मत ले जाना। कोई नहीं ले जाता। कभी-कभी शराब वगैरह कोई पी ले तो भूल हो जाती है, अन्यथा नहीं। कोई शराब पी ले तो भूल जाता है कि पब्लिक प्लेस है और प्राइवेट फेस, तो तकलीफ होती है। ___ इसलिए भले आदमी शराब पीने से बहुत डरते हैं। बुरे आदमी उतने नहीं डरते हैं, क्योंकि उनका चेहरा सब जानते हैं। उससे बड़ा और बुरा चेहरा उनके पास नहीं है। अगर दुनिया के सब भले आदमियों को इकट्ठा करके शराब पिलाई जा सके तो आपको पता चलेगा कि प्राइवेट फेसेस क्या हैं।
अचौर्य
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