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व्यक्तित्वों को चुरा कर अपने पर ओढ़ना शुरू कर दिया जो वह नहीं है। पाखंड, हिपोक्रेसी परिणाम होगा।
इसलिए जितना तथाकथित धार्मिक समाज, उतना पाखंडी, उतना हिपोक्रेट। उसका कारण है, क्योंकि वहां कोई व्यक्ति वही नहीं है, जो वह है। वहां सभी व्यक्ति वही है, जो वह नहीं है। ऐसा समझें कि कोई व्यक्ति अपनी जगह नहीं है, सब किसी और की जगह खड़े हैं। कोई व्यक्ति अपनी आंखों से नहीं देख रहा है, सब किसी और की आंखों से देख रहे हैं। कोई व्यक्ति अपने ओंठों से नहीं हंस रहा है, सब व्यक्ति दूसरों के ओंठों से हंस रहे हैं। कोई व्यक्ति अपने से नहीं जी रहा है, सब व्यक्ति किसी और से जी रहे हैं। जो असंभव है। न तो मैं किसी की जगह जी सकता हूं और न किसी की जगह मर सकता हूं। न मैं किसी के ओंठ से हंस सकता हूं और न किसी के हृदय से अनुभव कर सकता हूं। मेरा अनुभव अनिवार्यरूपेण निजी होगा। और निजी होगा उसी दिन मैं अचौर्य को उपलब्ध होऊंगा, उसके पहले नहीं हो सकता। मैं जिस दिन स्वयं ही रह जाऊंगा, मेरे पास कोई ओढ़ा हुआ व्यक्तित्व नहीं होगा, उस दिन मैं अचौर्य को उपलब्ध हो जाऊंगा, अन्यथा मैं चोर बना रहूंगा।
ध्यान रहे, वस्तुओं के चोरों को तो हम जेलों में बंद कर देते हैं, व्यक्तित्वों के चोरों के साथ हम क्या करें? जिन्होंने पर्सनैलिटीज चुराई हैं, उनके साथ क्या करें? उन्हें हम सम्मान देते हैं, उन्हें हम मंदिरों में, मस्जिदों में, गिरजाघरों में आदृत करते हैं। ___ ध्यान रहे, वस्तुओं के चोर ने कोई बहुत बड़ी चोरी नहीं की है, व्यक्तित्व के चोर ने बहुत बड़ी चोरी की है। और वस्तुओं की चोरी बहुत जल्दी बंद हो जाएगी, क्योंकि वस्तुएं ज्यादा हो जाएंगी, चोरी बंद हो जाएगी, लेकिन व्यक्तित्वों की चोरी जारी रहेगी। हम चुराते ही रहेंगे, दूसरे को ओढ़ते ही रहेंगे। ___ इसे आप जरा सोचना कि आप स्वयं होने की हिम्मत जिंदगी में जुटा पाये, या नहीं जुटा पाये? अगर नहीं जुटा पाये तो आपके व्यक्तित्व की अनिवार्य आधारशिला चोरी की होगी। आपने कोई और बनने की कोशिश तो नहीं की है? आपके चेतन-अचेतन में कहीं भी तो किसी और जैसा हो जाने का आग्रह तो नहीं है? अगर है, तो उस आग्रह को ठीक से समझ कर उससे मुक्त हो जाना जरूरी है। अन्यथा अचौर्य, नो-थेफ्ट की स्थिति नहीं पैदा हो पाएगी।
और यह चोरी ऐसी है कि इससे आपको कोई भी रोक नहीं सकता, क्योंकि व्यक्तित्व अदृश्य चोरियां हैं। धन चुराने जाएंगे, पकड़े जा सकते हैं। व्यक्तित्व चुराने जाएंगे, कौन पकड़ेगा? कैसे पकड़ेगा? कहां पकड़ेगा? और व्यक्तित्व की चोरी ऐसी है कि किसी से कुछ छीनते भी नहीं और आप चोर हो जाते हैं। व्यक्तित्व की चोरी आसान और सरल है। सुबह से उठ कर देखना जरूरी है कि मैं कितनी बार दूसरा हो जाता हूं। हम व्यक्ति नहीं हो पाते व्यक्तित्वों के कारण। पर्सनैलिटीज के कारण पर्सन पैदा नहीं हो पाता। ___ यह शब्द 'पर्सनैलिटी' बड़ा अच्छा शब्द है-यूनान में ग्रीक ड्रामा से आया हुआ शब्द है। यूनान में जो यूनानी ड्रामा होता था उसमें प्रत्येक अभिनेता को अपने ऊपर एक मुखौटा, एक चेहरा ओढ़ना पड़ता था, एक मास्क पहनना पड़ता था। उस चेहरे को परसोना कहते
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ज्यों की त्यों धरि दीन्हीं चदरिया
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