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________________ दिखाये चले जाते हैं। आध्यात्मिक अर्थों में चोरी का अर्थ है : जो आप नहीं हैं उसे दिखाने की कोशिश, उसका दावा। हम सब वही कर रहे हैं, सुबह से सांझ तक हम दावे किये जाते हैं। वह अमरीकी अभिनेता ही अगर भूल गया हो कि मेरा ओरीजिनल-फेस, मेरा अपना चेहरा क्या है, ऐसा नहीं है; हम भी भूल गये हैं। हम सब बहुत-से चेहरे तैयार रखते हैं। जब जैसी जरूरत होती है वैसा चेहरा लगा लेते हैं। और जो हम नहीं हैं, वह हम दिखाई पड़ने लगते हैं। किसी आदमी की मुस्कुराहट देख कर भूल में पड़ जाने की कोई जरूरत नहीं है, जरूरी नहीं है कि भीतर आंसू न हों। अक्सर तो ऐसा होता है कि मुस्कुराहट आंसुओं को छिपाने का इंतजाम ही होती है। किसी आदमी को प्रसन्न देख कर ऐसा मान लेने की कोई जरूरत नहीं है कि उसके भीतर प्रसन्नता का झरना बह रहा है, अक्सर तो वह उदासी को दबा लेने की व्यवस्था होती है। किसी आदमी को सुखी देख कर ऐसा मान लेने का कोई कारण नहीं है कि वह सुखी है, अक्सर तो दुख को भुलाने का आयोजन होता है। __ आदमी जैसा भीतर है वैसा बाहर दिखाई नहीं पड़ रहा है, यह आध्यात्मिक चोरी है। और जो आदमी इस चोरी में पड़ेगा उसने वस्तुएं तो नहीं चुराईं, व्यक्तित्व चुरा लिये। और वस्तुओं की चोरी बहुत बड़ी चोरी नहीं है, व्यक्तित्वों की चोरी बहुत बड़ी चोरी है। इसलिए जिस आदमी को अचौर्य में उतरना हो, उसे पहली बात यह समझ लेनी चाहिए कि वह भूल कर भी कभी व्यक्तित्व न चुराये। महावीर से जो व्यक्तित्व लेगा वह चोर हो जाएगा। बुद्ध से जो व्यक्तित्व लेगा वह चोर हो जायेगा। जीसस से जो व्यक्तित्व लेगा वह चोर हो जाएगा। कष्ण से जो व्यक्तित्व लेगा वह चोर हो जाएगा। चोर का मतलब ही यह है कि जिसने जो है वह नहीं, बल्कि जो नहीं था उसको ओढ़ लिया। अब दूसरा कोई आदमी पृथ्वी पर दुबारा महावीर नहीं हो सकता, हो ही नहीं सकता। वे सारी की सारी स्थितियां दुबारा नहीं दोहराई जा सकतीं जो महावीर के होने के वक्त हुईं। न तो वह पिता खोजे जा सकते हैं फिर से जो महावीर के थे। न वह मां खोजी जा सकती है फिर से जो महावीर की थी। न वह आत्मा दुबारा खोजी जा सकती है जो महावीर की थी। न वह शरीर खोजा जा सकता है जो महावीर का था। न वह युग खोजा जा सकता है जो महावीर का था। न वे चांद-तारे खोजे जा सकते हैं। कुछ भी नहीं खोजा जा सकता। इस जगत में जो क्षण बह गया वह बह गया। ___ इसलिए दूसरा कोई आदमी जब भी महावीर होने की कोशिश करेगा तो वह चोर महावीर हो जाएगा। दूसरा कोई आदमी अगर कृष्ण होने की कोशिश करेगा तो वह चोर कृष्ण हो जाएगा। कोई आदमी जब भी दूसरा आदमी होने की कोशिश करेगा तो आध्यात्मिक चोरी में पड़ जाएगा। उसने व्यक्तित्व चुराने शुरू कर दिये। और धर्म का हम यही मतलब समझे बैठे हैं : किसी के जैसे हो जाओ, अनुयायी बनो, अनुकरण करो, अनुसरण करो, पीछे चलो, ओढ़ो, किसी को भी ओढ़ो, खुद मत रहो बस, किसी को भी ओढ़ो। इसलिए कोई जैन है, कोई हिंदू है, कोई ईसाई है, कोई बौद्ध है। ये कोई भी धार्मिक नहीं हैं। ये धर्म के नाम पर गहरी चोरी में पड़ गये हैं। अनुयायी चोर होगा ही आध्यात्मिक अर्थों में, उसने किसी दूसरे अचौर्य Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004032
Book TitlePanch Mahavrat Pravachan aur Prashnottari - Jyo ki Tyo Dhari Dinhi Chadariya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year2012
Total Pages330
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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