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अब पति पति नहीं है, सिर्फ मित्र रह गया। अब पत्नी पत्नी नहीं है, दासी नहीं है, सिर्फ मित्र रह गई। वह बीच का संबंध अचानक खो गया। ___ अपरिग्रह का मतलब है हमारे और व्यक्तियों, हमारे और वस्तुओं के बीच के संबंध का रूपांतरण। मालकियत गिर गई। बीच से मालकियत गिर जाये मेरे और किसी के बीच, तो अपरिग्रह फलित हो गया। इसलिए अपरिग्रह त्याग से बहुत कठिन बात है। अपरिग्रह वैराग्य से बहुत कठिन बात है। वैराग्य बहुत सरल बात है। क्योंकि वह दूसरी अति है, और मन का पेंडुलम दूसरी अति पर बहुत जल्दी जा सकता है। जो आदमी बहुत ज्यादा खाना खाता है, उससे उपवास करवाना सदा आसान है। जो आदमी स्त्रियों के पीछे पागल है, उसे ब्रह्मचर्य की कसम दिलवाना बहुत आसान है। जो आदमी बहुत क्रोधी है, उसे अक्रोध का व्रत दिलवाना बहुत आसान है।
लेकिन ध्यान रहे, वह अक्रोध का व्रत भी क्रोधी आदमी ले रहा है। इसलिए जल्दी ले रहा है। अगर कम क्रोधी होता तो थोड़ा सोच कर लेता। अगर और भी कम क्रोधी होता तो शायद लेता ही नहीं। क्योंकि व्रत लेने के लिए भी क्रोध होना जरूरी है। अभी तक वह दूसरों पर क्रोधित था, अब अपने पर क्रोधित हो गया है, और कोई फर्क नहीं है। अभी तक वह दूसरों की गर्दन दबाता था, अब वह व्रत लेकर अपनी गर्दन दबायेगा कि अब मैं क्रोध नहीं करूंगा। अब देखू कि कैसे क्रोध होता है! अब वह अपनी गर्दन पकड़ लेगा। एक अति से दूसरी अति सदा आसान है। लेकिन जो मध्य में ठहर जाते हैं, वे धर्म को उपलब्ध हो जाते हैं। ___ कनफ्यूशियस एक गांव में गया। और उस गांव के लोगों ने कहा कि हमारे गांव में एक बहुत बुद्धिमान आदमी है, आप जरूर उनके दर्शन करें। कनफ्यूशियस ने कहा, उसे तुम बुद्धिमान क्यों कहते हो? तो उन्होंने कहा कि वह बहुत विचारशील है। कनफ्यूशियस ने कहा कि ज्यादा विचारशील तो नहीं है? उन्होंने कहा कि ज्यादा, बहुत ज्यादा विचारशील है। एक काम करता है तो तीन बार सोचता है। तो कनफ्यूशियस ने कहा कि मुझे उस आदमी से बचाओ। मैं वहां न जाऊंगा। पर उन्होंने कहा, आप कैसी बातें कर रहे हैं। क्या वह आदमी बुद्धिमान नहीं है? कनफ्यूशियस ने कहा, वह जरा ज्यादा बुद्धिमान हो गया, जरा ज्यादा अनबैलेंस्ड हो गया। जो आदमी एक बार सोचता है वह भी अति पर है, जो तीन बार सोचने लगा वह दूसरी अति पर चला गया। दो बार काफी है। ___ कनफ्यूशियस का मतलब कुल इतना है कि जो बीच में ठहर जाये, काफी है। वह जो गोल्डन मीन है, वह जो बीच में ठहर जाना है; न त्याग, न भोग। न वस्तुओं की पकड़, न वस्तुओं का छोड़। अपरिग्रह तब फलित होता है, मध्य में फलित होता है।
ये थोड़ी-सी बातें मैंने कहीं। इसमें अपरिग्रह की आप बिलकुल चिंता न करें। आप चिंता करें परिग्रह को समझने की। और ध्यान रखें, परिग्रह को छोड़ने की चिंता भर मत करना, परिग्रह को समझने की चिंता करना। परिग्रह क्यों, क्या, कौन सी कमी पूरी कर रहा है? दो चीजें जिस दिन दिख जायेंगी कि परिग्रह को मैं अपनी आत्मा की भर्ती और पूर्ति करना
अपरिग्रह 47 www.jainelibrary.org
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