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चाहता हूं, आत्मा के खालीपन और रिक्तता को भरना चाहता हूं, यह असंभव है-एक।
और दूसरी बात यह कि जिस चीज से हम बंधते हैं, बांधते हैं, उससे बंध भी जाते हैं और गुलाम हो जाते हैं। और तीसरी कि हमारे सारे अतीत का अनुभव कहता है कि सब मिल जाये फिर भी कुछ नहीं मिलता है। खाली के खाली रह जाते हैं। यह स्मरण पूरा हो जाये तो आप अचानक पायेंगे कि आपकी जिंदगी में अपरिग्रह की किरणें उतरनी शुरू हो गई हैं।
कल हम तीसरे सूत्र अचौर्य पर विचार करेंगे। वह भी परिग्रह की एक और भी सूक्ष्म यात्रा है।
मेरी बातों को इतनी शांति और प्रेम से सुना, उससे बहुत अनुगृहीत हूं। और अंत में सबके भीतर बैठे प्रभु को प्रणाम करता हूं। मेरे प्रणाम स्वीकार करें।
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ज्यों की त्यों धरि दीन्हीं चदरिया
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