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________________ आप पछतायेंगे, आज फिर आप कसम खायेंगे कि क्रोध नहीं करेंगे। कल भी यही होगा, परसों भी यही होगा। हम आदमी हैं या मशीन हैं? यंत्र अगर घूमता चला जाये तो समझ में आता है, आदमी भी घूमता चला जाये तो शक होता है कि यह आदमी है या मशीन है। लोग कहते हैं कि आदमी जो है वह रेशनल एनिमल है, लेकिन आदमी इसका कोई सबूत नहीं देता। आदमी को देख कर बिलकुल पता नहीं चलता कि आदमी बुद्धिमान है। आदमी से ज्यादा बुद्धिहीन प्राणी खोजना बहुत मुश्किल है। आदमी सीखता ही नहीं। ज बड़ी-से-बड़ी बात सीखने की हो सकती है जिंदगी में, वह यह है कि परिग्रह एक व्या है। । वस्तुएं व्यर्थ हैं, यह मैं नहीं कह रहा हूं। आपके घर में कुर्सी है, यह व्यर्थ है, यह मैं नहीं कह रहा हूं। कुर्सी कैसे व्यर्थ हो सकती है ? कुर्सी तो बैठने के काम आती है, आ सकती है। मैं यह नहीं कह रहा कि आपके पास मकान है, वह व्यर्थ है। मकान रहने के काम आ सकता है, आता है, आना चाहिए। वस्तुएं व्यर्थ हैं, यह मैं नहीं कह रहा । वस्तुओं की अपनी सार्थकता है। जो मैं कह रहा हूं वह यह कह रहा हूं कि वस्तुओं से हम अपने को भर लेंगे, इसकी कोई सार्थकता नहीं है । वस्तुएं हमारी आत्माएं बन जायेंगी, इसका कोई उपाय नहीं है। परिग्रह के प्रति अगर हम थोड़ी-सी भी आंख खोल कर देख लें तो हम अचानक पायेंगे कि हम उस दुनिया में प्रवेश करने लगे हैं, जहां पजेसिवनेस छूटती है, और खोती है, और विदा हो जाती है। फिर जिस दिन हम पकड़ छोड़ देते हैं उस दिन एक घटना घटती है कि हम अकेले ही रह जाते हैं। न तो पत्नी रह जाती है, न मित्र रह जाते हैं, न भाई रह जाते हैं, न मकान रह जाता है। ये सब अपनी जगह हैं । ये एक बड़े खेल के हिस्से हैं। और यह खेल ठीक वैसा है जैसा लोग शतरंज खेलते हैं । उसमें कोई घोड़ा होता है, कोई हाथी होता है, लेकिन कभी कोई इस भ्रम में नहीं पड़ता कि इस घोड़े पर सवारी की जाये। शतरंज के खेल और नियम के भीतर घोड़ा बड़ा सार्थक है, उसकी अपनी उपयोगिता है, उसकी अपनी चाल है, उसकी अपनी हार और जीत है। लेकिन कभी-कभी लोग शतरंज में भी पागल हो जाते हैं । इजिप्त में एक सम्राट शतरंज में पागल हो गया । वह धीरे-धीरे इतना पागल हो गया कि उसने असली घोड़े छुड़वा दिये अपने अस्तबलों से और शतरंज के घोड़े बंधवा दिये । वह दिन-रात घोड़े - हाथियों में जीने लगा शतरंज के, और जब उस पर हमला होने की संभावना आयी तो उसने कहा कि शतरंज के सब घोड़े लगा दो । तब तो उसके दरबार के लोगों ने कहा कि अब दिमाग पूरा खराब हो गया है। अब बड़ी मुश्किल है, इसको कैसे ठीक किया जाये, यह कैसे ठीक होगा ? तो देश के सब विचारक, समझदार लोग, वाइज़ मैन बुलाये गये और उनसे पूछा गया कि यह कैसे ठीक होगा। उन्होंने कहा कि इसने शतरंज के खेल को जिंदगी समझ लिया है। एक बूढ़ा आदमी जो उन बुद्धिमानों में आया हुआ था वह उठ कर जाने लगा । उसने कहा, सम्राट ठीक नहीं होगा। क्योंकि जो ठीक करने आये हैं, इनमें और उसमें बहुत फर्क नहीं है । अपरिग्रह Jain Education International For Personal & Private Use Only 43 www.jainelibrary.org
SR No.004032
Book TitlePanch Mahavrat Pravachan aur Prashnottari - Jyo ki Tyo Dhari Dinhi Chadariya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year2012
Total Pages330
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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