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जाती। वह भी भूल चुका था। उसने मौत से कहा, कौन-सा अनुभव? कैसा अनुभव? उस मौत ने कहा, मैं दस बार आ चुकी हूं। उस बूढ़े ने कहा, मुझे कुछ स्मरण नहीं।
असल में दुख को हम भुलाना चाहते हैं और हम भूल जाते हैं। जो-जो दुख है उसे हम भूल जाते हैं, जो-जो सुख है उसे हम सम्हाल कर रखते हैं। जो-जो दुख है उसे हम छोटा करते जाते हैं, जो-जो सुख है उसे हम धीरे-धीरे मन में बड़ा करते जाते हैं। इसलिए बूढ़ा आदमी कहता है, बचपन में बहुत सुख था। कोई बच्चा नहीं कहता। बच्चा कहता है, कितनी जल्दी बड़े हो जायें। बड़े के पास बहुत सुख मालूम पड़ता है। कोई बच्चा सुखी नहीं है। लेकिन सब बूढ़े कहते हैं, बचपन में बहुत सुख था। बच्चे बहुत जल्दी बड़े होना चाहते हैं। सब बच्चे परेशान हैं, क्योंकि उनको हजार तरह के दुख हैं। बच्चा होना भी बड़ा दुख है बड़ों की दुनिया में। चारों तरफ बड़े हैं और एक छोटा बच्चा है। बड़े गंभीर चर्चा कर रहे हैं और उसे खेलने की आज्ञा नहीं है। और उस छोटे बच्चे को बड़ों की गंभीर चर्चा एकदम निपट नासमझी की मालूम पड़ती है, खेल सार्थक मालूम पड़ता है। सब तरफ दबाव है, सब तरफ आज्ञा है-यह मत करो, वह मत करो। बच्चा बहुत जल्दी बड़ा होना चाहता है कि कब वह बड़ा हो जाये और दूसरों से कह सके कि यह मत करो। लेकिन सब बूढ़े कहते हैं कि बचपन बहुत सुखद था। उन्होंने बचपन के सब दुख भुला दिये। ___ अब यह बड़े मजे की बात है, आप कहेंगे कि नहीं, एक आदमी अगर सौ बार मरा हो, दस बार मौत आयी हो उसकी, तो भूल नहीं सकता। आप जन्मे थे, आपको याद है जन्म की? निश्चित ही एक बात तो कम से कम पक्की है ही, पीछे के जन्मों को हम छोड़ दें, इस बार आप जन्मे हैं इतना तो पक्का ही है। लेकिन आपको कोई याद है जन्म की? जन्म इतनी दुखद प्रक्रिया है कि उसकी याद मन नहीं बनाता। मां जितना दुख झेलती है जन्म देते वक्त, वह कुछ भी नहीं है, जो बेटा झेलता है। और मां तो बहुत जल्दी प्रसव-पीड़ा से मुक्त हो जायेगी। कोई कारण नहीं है, लेकिन बेटा, वह जो दुख झेलता है वह इतना भारी है कि उसे अपनी स्मृति से हटा देता है। __हमारी स्मृति पूरे वक्त चुनाव कर रही है कि क्या बचाना है, क्या हटाना है। अगर हमें कोई बताने वाला न हो कि हम जन्मे हैं, तो हमें पता ही नहीं चलेगा कि हम जन्मे हैं। लेकिन जन्म के वक्त आप थे, जन्म की घटना आपके ऊपर घटी है। जन्म की घटना से आप गुजरे हैं, लेकिन उसकी स्मृति कहां है? उसकी स्मृति नहीं है, क्योंकि वह बहुत दुखद घटना है। मां के अंधकारपूर्ण पेट से, परम विश्राम से, जहां श्वास लेने की तकलीफ भी नहीं है, जहां जीने के लिए भी कुछ करना नहीं पड़ता, सिर्फ जीना है।
मनोवैज्ञानिक तो हजार-हजार अनुभव के आधार पर कहते हैं कि मनुष्य को मोक्ष की जो कल्पना आयी है, वह गर्भ की स्मृति से आयी है। गर्भ में इतनी शांति है, इतना मौन है, टोटल साइलेंस है, कोई श्रम नहीं है। कुछ करना नहीं है, सिर्फ होना है। उस होने की दुनिया से एक झटके के साथ उस दुनिया में आना जहां जिंदा रहना हो तो श्वास भी लेनी पड़ेगी, भोजन भी लेना पड़ेगा, रोना भी पड़ेगा, चिल्लाना भी पड़ेगा। जहां जिंदगी कठिनाइयों से
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