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________________ तो पचास साल का उसका बेटा क्यों जिंदा रहना न चाहे? अस्सी साल का उसका बेटा जिंदा क्यों न रहना चाहे? और बीस साल का उसका बेटा जिंदा क्यों न रहना चाहे? वे निन्यानबे बेटे तो चुप होकर बैठ गये। जो सबसे कम उम्र का बेटा था वह उठ कर खड़ा हुआ। उसकी उम्र कोई पंद्रह-सोलह साल थी। उसने कहा कि मेरी उम्र ले लें। मौत ने उसे बहुत रोका कि पागल तू यह क्या कर रहा है! उसने कहा कि जब मेरे पिता सौ वर्ष में कुछ पूरा नहीं कर पाये, तो मैं भी क्या पूरा कर पाऊंगा! उनको दे जाता हूं। शायद दो सौ वर्ष में वे कुछ पूरा कर पायें। सौ वर्ष ही तो मेरे पास हैं न! और मेरा भी कोई बेटा शायद ही राजी होगा जिस दिन मुझे उम्र की जरूरत पड़ेगी। क्योंकि देखता हूं कि निन्यानबे बेटों में से कोई राजी नहीं है, तो मेरा बेटा भी शायद ही कोई राजी होगा। और उस बेटे ने मौत से कहा कि कम से कम मुझे यह तो रहेगा कि अपनी कोई आशा विफल न हुई, क्योंकि हमने कोई आशा ही न की। तो आनंद के साथ तो मर सकूँगा। पिता तो बहुत विषाद से मर रहे हैं। इतनी कृपा करना मुझ पर, कि जब सौ साल बाद पिता फिर से मरें, तो मुझे जरा खबर कर देना कि क्या हालत बनी। सौ वर्ष बीत गये। वर्ष बीतने में देर नहीं लगती। सौ वर्ष बीत गये, मौत फिर से द्वार पर खड़ी हो गयी है आकर। सम्राट ने कहा, लेकिन अभी तो सब आशाएं अधूरी हैं, कोई सपने पूरे नहीं हुए। तब तक उसके पुराने सौ बेटे मर चुके हैं, लेकिन और सौ बेटे पैदा हो गये हैं। उसने कहा, मेरे बेटों को बुलाओ। मौत ने कहा, देखते नहीं आप, दो सौ वर्ष में भी कुछ नहीं हो पाया। उसने कहा, थोड़ा और समय मिल जाये तो शायद पूरा हो जाये। वह 'शायद', वह 'परहेप्स' आखिरी मृत्यु के क्षणों में भी खड़ा रहता है। शायद पूरा हो जाये! ठीक, सौ बेटे बुलाये गये, फिर एक बेटा राजी हो गया। मौत ने उसे भी समझाया कि तू पागल है। पर उसने कहा, बेहतर हो कि तू हमारे पिता को समझा कि वह पागल हैं। क्योंकि दो सौ वर्ष में कुछ पूरा नहीं हो पाया तो मैं भी क्या कर पाऊंगा? उस बेटे ने मरने के पहले अपने पिता से पूछा कि थोड़ा-बहुत भी पूरा हुआ है दो सौ वर्षों में? उसके पिता ने कहा, थोड़ा-बहुत? कुछ भी पूरा नहीं हुआ। मैं वहीं खड़ा हूं जहां मैं आया था पृथ्वी पर, तब था। तो उस बेटे ने कहा, मैं खुशी से जाता हूं, कोई विषाद नहीं है। कहते हैं, ऐसा एक हजार साल तक हुआ। वह बूढ़ा एक हजार साल तक जीया। उसके बेटे बदलते चले गये, उसकी उम्र बढ़ती चली गयी, और जब हजारवें वर्ष मौत आयी तो मौत थक चुकी थी, लेकिन वह बूढ़ा नहीं थका था। और मौत ने कहा, बस, अब नहीं। अब काफी हो गया। मैं कब तक आती रहूंगी? तुम अनुभव से सीखते ही नहीं। उस बूढ़े ने कहा, लेकिन अभी तो कुछ भी नहीं हुआ। अभी तो सब वहीं का वहीं रिक्त और खाली है। थोड़ा समय शायद मिल जाये तो कुछ हो सके। यह बात वह दस बार मौत से कह चुका है। इस बढे पर हंसना मत आप. यह कहानी नहीं है. यह हम सबकी कहानी है। यह बात हम भी मौत से हजार बार कह चुके हैं, याद नहीं है। उसको भी याद नहीं था। अगर उसको भी याद होता कि दस बार यही बात कही जा चुकी है, तो शायद दसवीं बार कहने में हिम्मत टूट 40 ज्यों की त्यों धरि दीन्हीं चदरिया Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004032
Book TitlePanch Mahavrat Pravachan aur Prashnottari - Jyo ki Tyo Dhari Dinhi Chadariya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year2012
Total Pages330
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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