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________________ कैसा है? सुबह से दोपहर हो गयी दौड़ते-दौड़ते, लेकिन फासला कम नहीं होता। रानी कहती है कि तू थोड़ा धीरे दौड़ती है, इसलिए फासला कम नहीं होता। जरा तेजी से दौड़। तू दौड़ की ताकत कम लगा रही है, दौड़ काफी नहीं है। यह बात लड़की की समझ में आ जाती है। बूढ़े की समझ में भी आ जाती है तो लड़की की समझ में आ जाये तो बहुत कठिन नहीं। उसकी समझ में आ जाती है कि जरूर फासला इसीलिए पूरा नहीं होता है कि दौड़ कमजोर है। इसलिए वह और तेजी से दौड़ती है। फिर सांझ सूरज ढलने लगता है, लेकिन फासला उतना का उतना ही है। फिर वह चिल्ला कर पूछती है कि अब तो अंधेरा भी उतरने लगा। वह रानी कहती है, तेरी दौड़ कमजोर है। वह लड़की और तेजी से दौड़ती है। अब तो अंधेरा भी काफी छाने लगा है, और रानी का दिखायी पड़ना मुश्किल होने लगा है। अब वह अंधेरे में चिल्ला कर पूछती है, तेरा देश कैसा है! अब तो रात भी उतर आयी, अब पहुंचने की आशा भी खोती है। रानी की खिलखिलाहट सुनायी पड़ती है और वह कहती है, पागल लड़की, शायद तुझे पता नहीं, दुनिया में सब जगह-जिस पृथ्वी से तू आती है, उस जगह भी-कोई कभी वहां नहीं पहुंचता, जहां पहुंचना चाहता है। फासला सदा वही रहता है, जो शुरू करते वक्त होता है। जन्म के दिन जितना फासला है, मृत्यु के दिन उतना ही फासला होता है। सिर्फ एक फर्क पड़ता है। जन्म के दिन सूरज निकलता है, मृत्यु के दिन सूरज ढलता है और अंधेरा हो रहा होता है। जन्म के दिन आशाएं होती हैं, मृत्यु के दिन फ्रस्ट्रेशंस होते हैं, विषाद होता है, हार होती है। जन्म के दिन आकांक्षाएं होती हैं, अभीप्साएं होती हैं, दौड़ने का बल होता है; मृत्यु के दिन थका मन होता है, हार होती है, टूट गये होते हैं। लेकिन फिर भी ऐसा समझने की कोई जरूरत नहीं है कि मरता हुआ आदमी अपरिग्रही हो जाता हो। मरता हुआ आदमी भी यही सोचता है, काश थोड़ी ताकत और होती, और थोड़े दिन और शेष होते तो दौड़ लेता! पहुंच जाता! ऐसी कथा है कि एक सम्राट की मौत करीब आ गयी। सौ वर्ष पूरे हो गये। मौत भीतर आयी और उसने सम्राट से कहा, मैं लेने आ गयी हूं। आप तैयार हो जायें। मौत सभी के पास आकर कहती है, आप तैयार हो जायें। हम न सुनें, यह बात दूसरी है; हम बहरे बन जायें, यह बात दूसरी है। सम्राट ने कहा, वक्त आ गया जाने का, लेकिन अभी तो मैं कुछ भी न भोग पाया। अभी तो सब आशाएं ताजी हैं, और अभी कोई चीज पूरी नहीं हुई। अभी मैं कैसे जा सकता हूं? लेकिन मौत ने कहा कि मुझे तो किसी को ले ही जाना पड़ेगा। अगर तुम्हारा कोई बेटा राजी हो तुम्हारी जगह मरने को, तो मैं उसे ले जाऊं! वह अपनी उम्र तुम्हें दे दे। सम्राट ने अपने बेटे बुलाये, बहुत बेटे थे उसके, सौ बेटे थे। बहुत रानियां थीं उसकी। उसने उन सब बेटों से कहा, कौन है जो मुझे अपनी उम्र दे दे, क्योंकि अभी तो मेरा कुछ भी पूरा नहीं हुआ। लेकिन वे बेटे भी आदमी थे और जब मरता हुआ सौ वर्ष का बूढ़ा भी जिंदा रहना चाहे । अपरिग्रह 39 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004032
Book TitlePanch Mahavrat Pravachan aur Prashnottari - Jyo ki Tyo Dhari Dinhi Chadariya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year2012
Total Pages330
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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