SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 46
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 34 मालिक नहीं हो सकते, और मारा कि मजा गया। क्योंकि मरे हुए के मालिक होने में कोई मजा नहीं आता। इसलिए एक पत्नी से मन दूसरी पत्नी पर जाता है, दूसरी से तीसरी पर जाता है। एक मकान से दूसरे मकान पर, दूसरे से तीसरे मकान पर । एक गुरु से दूसरे गुरु पर, एक शिष्य से दूसरे शिष्य पर। जिस चीज के हम मालिक हो जाते हैं, वह बेमानी हो जाती है। क्योंकि मालिक होते ही वह मुर्दा हो जाती है, और मुर्दा के मालिक होने में कोई ज्यादा मजा नहीं आता। कोई मजा नहीं है। जिंदा का मालिक होना चाहिए। इसलिए मालकियत में एक दूसरा विरोधाभास है । और वह विरोधाभास यह है कि मालकियत मारती है और मार कर अप्रसन्न हो जाती है। क्योंकि प्रसन्नता खो जाती है। प्रेयसी जितना सुख देती है उतना पत्नी नहीं देती। लेकिन प्रेयसी को तत्काल पत्नी बनाने की इच्छा होती है। क्योंकि प्रेयसी की मालकियत अनिश्चित है । पत्नी की मालकियत सुनिश्चित है। लेकिन पत्नी बनते ही वह मर गई । मरते ही वह बेमानी हो गई। इसलिए जिस व्यक्ति को हम पा लेते हैं वह बेमानी हो जाता है । हम उसे भूल जाते हैं, वह अर्थ ही नहीं रह जाता। जो लोग व्यक्तियों को मार-मार कर इकट्ठा करते जाते हैं, वे धीरेधीरे व्यक्तियों से ऊब जाते हैं। क्योंकि मारने में व्यर्थ श्रम करना पड़ता है। श्रम के बाद फल कुछ भी नहीं मिलता। इसलिए जो समझदार परिग्रही हैं, चालाक, वे व्यक्तियों को छोड़ कर वस्तुओं पर परिग्रह बिठाने लगते हैं। उनको मारने की झंझट नहीं करनी पड़ती। वे मरी - मराई ही होती हैं। इसलिए जो लोग व्यक्तियों से परेशान होकर ऊब गये हैं, वे धन इकट्ठा करने में, पद इकट्ठा करने में लग जाते हैं। वह ज्यादा सुविधापूर्ण है, कनवीनिएंट है। एक घर में कुर्सी ले आये हैं वह मरी हुई ही घर में आती है । उसको कहां रखना है, इसके आप पूरे मालिक हैं। रखना है, नहीं रखना है, आप पूरे मालिक हैं । उसको मारने की जद्दोजहद और परेशानी नहीं होती। और जब हम किसी व्यक्ति को घर में लाते हैं तो उसको भी हम कुर्सी बनाना चाहते हैं। जब तक वह कुर्सी नहीं बनता तब तक हमें बेचैनी रहती है। जब वह कुर्सी बन जाता है तब फिर बेचैनी शुरू हो जाती है। I इसलिए जो चालाक परिग्रही हैं, वे वस्तुओं पर मेहनत करते हैं। जो नासमझ परिग्रही हैं, वे व्यक्तियों पर मेहनत करते रहते हैं । लेकिन दोनों ही अज्ञान की मेहनत हैं। न तो हम व्यक्तियों से भर सकते हैं अपने को, न वस्तुओं से भर सकते हैं अपने को । हमारे हाथ खाली ही रह जायेंगे । भरने की जगह सिर्फ एक है। हम अपने से भर सकते हैं । और कोई भराव नहीं है। इस दुनिया में और कोई भराव है ही नहीं । कभी रहा ही नहीं है। हम सिर्फ अपने से भर सकते हैं। लेकिन अपना हमें कोई पता नहीं है। इस अपने का कैसे पता लगे ? और इस अपने के पता लगने में अपरिग्रह की दृष्टि कैसे सहयोगी हो सकती है? तो एक बात आप से कहना चाहूंगा - जो भी आपके पास है, ऑल दैट यू हैव, जो भी आपके पास है, उस पर एक दफा गौर से नजर डाल कर देखना ज्यों की त्यों धरि दीन्हीं चदरिया Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004032
Book TitlePanch Mahavrat Pravachan aur Prashnottari - Jyo ki Tyo Dhari Dinhi Chadariya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year2012
Total Pages330
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy