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वे बहुत घबड़ाये। क्योंकि डायोजनीज उनके हमले का जवाब दे देता तो शायद इतने न घबड़ाते। उन्हें कहने में बड़ी कठिनाई हो गई कि हम तुम्हें गुलाम बनाने आये हैं। वे एकदूसरे की तरफ देखने लगे। तो डायोजनीज ने कहा, मत फिक्र करो, बोलो, तुम जो कहोगे वही हो जाएगा। उन्होंने नीचे आंखें झुका कर कहा कि हम बहुत शर्मिंदा हैं, लेकिन हम तुम्हें गुलाम बनाने आये हैं। डायोजनीज ने कहा, यह भी खूब बढ़िया रहा। चलो, हम गुलाम हुए। अब क्या इरादे हैं? उन लोगों ने डायोजनीज की तरफ देखा और उन्होंने कहा कि गुलाम हुए? क्या कोई विरोध न करोगे? डायोजनीज ने कहा, हम अपने मन के मालिक हैं। हम गुलाम होना भी चुन सकते हैं, लड़ाई कुछ भी नहीं है। अब कहां चलना है? तो उन्होंने कहा, हम हाथ में जंजीरें डाल दें। डायोजनीज ने कहा, पागलो, जंजीरों की कोई जरूरत नहीं। हम तो तुम्हारे साथ चल ही रहे हैं। चलो जहां चलना है।
वे डायोजनीज को लेकर बाजार में पहुंचे। भीड़ इकट्ठी हो गई। इतना सुंदर गुलाम शायद ही कभी बिकने आया हो। टिकटी पर खड़ा किया गया डायोजनीज को। और जब नीलाम करने वाले आदमी ने कहा कि जो इस गुलाम को खरीदना चाहे वह बोली शुरू करे। तो डायोजनीज ने कहा, चुप नासमझ, पूछ उनसे कि कौन किसके साथ आया है? वे मेरे पीछे
आये हैं कि मैं उनके पीछे आया हूं? बंधा कौन किससे है? मैं उनसे बंधा हूं कि वे मुझसे बंधे हैं? गुलाम शब्द का उपयोग मत करना। हम अपने मालिक हैं। रुक, मैं खुद ही आवाज लगा देता हूं। तो डायोजनीज ने उस टिकटी से खड़े होकर कहा कि अगर कोई एक मालिक को खरीदना चाहे तो एक मालिक बिकने आया हुआ है। भीड़ हैरान हो गई। उन्होंने कहा, मालिक? डायोजनीज ने कहा, मैं अपना मालिक हूं।
यह जो अपनी मालकियत है, यह एक विधायक उपलब्धि है। यह विधायक उपलब्धि हो जाये तो बाहर की पकड़ छूट जाती है। बाहर की पकड़ सिर्फ इसीलिए है कि भीतर की कोई पकड़ नहीं है। हम बाहर पकड़े चले जाते हैं। और जिसको भी हम बाहर पकड़ते हैं उसकी हम हत्या करना शुरू कर देते हैं।
परिग्रह की जो हिंसा है वह यही है कि अगर हम किसी व्यक्ति को पकड़ेंगे बाहर तो हम उसे मारना शुरू कर देंगे। क्योंकि बिना मारे उसे पजेस नहीं किया जा सकता। उसे मारना ही पड़ेगा। अगर एक गुरु एक शिष्य को पकड़ ले तो वह शिष्य को मारना शुरू कर देगा। क्योंकि जिंदा शिष्य शिष्य नहीं बनाया जा सकता। उसे मारना जरूरी है। इसलिए आज्ञाएं, अनुशासन, नियम, मर्यादा उन सब में उसे मारा जाएगा। उसकी स्वतंत्रता काटी जाएगी। जब वह मुर्दा हो जाएगा तभी शिष्य हो सकता है। एक पति अपनी पत्नी को मारना शुरू कर देगा, एक पत्नी अपने पति को मारना शुरू कर देगी। एक मित्र दूसरे मित्र को मारना शुरू कर देगा। क्योंकि जब उसे बिलकुल मार डाला जाये, तभी आश्वस्त हुआ जा सकता है कि वह भाग नहीं जाएगा। वह स्वतंत्र नहीं हो जाएगा। __ लेकिन इसमें एक बड़ी आंतरिक कठिनाई है। जब हम किसी व्यक्ति को मार कर उसके मालिक हो जाते हैं तो मालिक होने का मजा चला जाता है। यह कंट्राडिक्शन है। बिना मारे
अपरिग्रह
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