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________________ 32 अगर बाहर की चीजों के होने से भीतर की रिक्तता नहीं मिटी तो बाहर की चीजों के न होने से कैसे मिटेगी ? बाहर की चीजों के होने से भी न मिटी तो बाहर की चीजों के छूटने से कैसे मिट सकती है ? A लेकिन आदमी का मन बुनियादी भूलों में घिरा रहता है। पहले वह सोचता है बाहर की चीजों को इकट्ठा करने से भर लूंगा। फिर जब पाता है कि बाहर की चीजें इकट्ठी हो गईं और भराव नहीं आया, तो सोचता है, बाहर की चीजों को छोड़ कर भर लूं। लेकिन पागल हुआ है। जब चीजों से भरा न जा सका, तो चीजों के हटाने से कैसे भर जाएगा ? इसलिए ध्यान रहे, अपरिग्रह का अर्थ बाहर की चीजों को छोड़ना नहीं है । अपरिग्रह का अर्थ भीतर की पूर्णता को पाना है । और जब भीतर पूर्णता भरती है, तो बाहर चीजों को भरने की दौड़ विदा हो जाती है। इसलिए मैंने कहा, परिग्रह का अर्थ वस्तुओं से नहीं है, परिग्रह का अर्थ पजेसिवनेस से है। एक जनक रह सकता है घर में भी लेकिन जनक परिग्रही नहीं है । परिग्रह तो है बहुत, परिग्रही नहीं है । और एक संन्यासी अपरिग्रही दिखाई पड़ता है, और परिग्रही हो सकता है। अक्सर होता है। क्योंकि उसने दूसरी भूल की है। उसने भूल की है कि चीजों को हटा दूंगा। लेकिन चीजों को हटाने से क्या होगा ? भीतर का खालीपन, हो सकता है दिखाई पड़ना बंद हो जाये, इतना हो सकता है। इतना हो सकता है कि चूंकि बाहर चीजें न रह जायें इसलिए बाहर भी खाली हो जाये, भीतर भी खाली हो जाये तो कंट्रास्ट न रह जाये और चीजें दिखाई पड़नी बंद हो जायें । लेकिन भीतर का खालीपन बाहर के खालीपन से भी नहीं मिट सकता । भीतर तो भराव चाहिए, भीतर फुलफिलमेंट चाहिए, भीतर एक पूर्णता का पॉजिटिव जन्म, विधायक जन्म चाहिए तो ही बाहर की पकड़ विदा होगी, अन्यथा विदा नहीं हो सकती । एक फकीर हुआ है, डायोजनीज । नंगा गुजर रहा है जंगल से । शायद महावीर की जोड़ का आदमी पश्चिम में वही हुआ । नग्न ही है। उतना ही मस्त, उतना ही आनंदित, उतना ही स्वस्थ। जंगल से गुजरता है । कुछ लोग गुलामों को बेचने बाजार में जा रहे हैं। उन्होंने देखा इस डायोजनीज को - अकेला, नंगा, स्वस्थ, सुंदर, शक्तिशाली । सोचा, अगर यह पकड़ में आ जाये तो इसके दाम अच्छे मिल सकते हैं। मगर डर लगा उन्हें कि इसे पकड़ भी पायेंगे ! तो वे आठ, लेकिन डर लगा कि इसे पकड़ भी पायेंगे ! शक्तिशाली है बहुत । कहीं झंझट हो जाये। फिर भी आठ हैं, कोशिश कर ली जाये। उन्होंने बड़ी ताकत इकट्ठी करके डायोजनीज पर हमला बोला, लेकिन डायोजनीज ने हमले का जवाब तो नहीं दिया; या कहें कि जवाब दिया, लेकिन डायोजनीज के ढंग से दिया। बीच में खड़ा हो गया आंख बंद करके और उनसे कहा कि बोलो क्या इरादे हैं? उसने कोई लड़ाई ही न की। वे सब कंप रहे थे भय से । उसने कहा, आश्वस्त हो जाओ, भयभीत मत होओ। मुझसे तुम्हारा कोई बुरा न होगा। क्योंकि जिसने अपने प्रति बुरा करना बंद कर दिया, वह किसी के प्रति बुरा कैसे कर सकता है? बोलो, क्या इरादे हैं ? ज्यों की त्यों धरि दीन्हीं चदरिया Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004032
Book TitlePanch Mahavrat Pravachan aur Prashnottari - Jyo ki Tyo Dhari Dinhi Chadariya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year2012
Total Pages330
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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